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________________ आदिकाल का हिन्दी जैन साहित्य और उसकी विशेषताएँ लेखक - हरिशंकर शर्मा 'हरीश' रिसर्च स्कोलर (हिन्दी विभाग ) इलाहाबाद युनिवसिटी हिन्दी साहित्य का आदिकाल एक संक्राति-काल है। इसमें अनेक प्रकार का साहित्य मिलता है । इतिहासकारोंने कुछ वीरगाथात्मक रचनाओं के कारण इसे वीरगाथाकाल भी कहा है। पर जो सात-आठ रचनाएं वीरगाथाओं के नाम से उपलब्ध हुई थीं, उनमें से कोई भी रचना तत्कालीन प्रवृत्ति का सही प्रतिनिधित्व नहीं करती थीं। यों 'वीरगाथा' शब्द वीरगीतों या वीरपूजा आख्यानकों की वीरतामूलक प्रवृत्तियों के पोषक साहित्य के लिए रूढ हो जाता है; अतः इतर साहित्य का उस में समावेश कठिनाई से हो पाता था । आदिकाल नामकरण से अब स्थिति थोड़ी सुलझ सी गई है। वस्तुतः अब इस काल में वीरता से इतर तत्कालीन अनेक प्रवृत्तियों की पोषक रचनाओं का भी सरलता से समावेश किया जा सकता है ।। आदिकाल में उपलब्ध होनेवाली सिद्धों और नाथों की अनेक रचनाएँ मिलती हैं, परन्तु उनकी प्रतिलिपियाँ एक तो बहुत ही बाद की मेलती हैं, और जो मिलती भी हैं उनकी प्रामाणिकता भी संदेह से मुक्त नहीं कही जा सकती। ऐसी स्थितिमें आदिकाल की भाषा और साहित्य को सुरक्षित रखनेवाला एक विशाल स्रोत तत्कालीन जैन साहित्य का है । शोध करने पर गुजरात, जैसलमेर, पाटण, अहमदाबाद, बीकानेर, आमेर और जयपुर आदि स्थानों के जैन भंडारों से यह आदिकालीन हिन्दी जैन साहित्य प्रचुर मात्रा में मिला है । ____ इस विशाल साहित्य को जन्म देने का श्रेय अपभ्रंश को है । प्राकृत से अपभ्रंश का उद्भव हुआ और अपभ्रंश से समस्त आधुनिक बोलियां या देश्यभाषाएँ बनी हैं । हिन्दी जैसी भाषा के उद्भव और विकास का श्रेय भी अपभ्रंश को ही है। अपभ्रंश की इसी विशालता पर प्रकाश डालते हुए श्री अगरचंद नाहटा लिखते हैं कि, "देश्य भाषाओं की समस्त क्रियायें एवं धातुरूप प्राकृतसंभूत अपभ्रंश में ढले हैं। इतना ही नहीं, हिन्दी को तो अपभ्रंश से कई वरदान व अमूल्य देन प्राप्त हुई हैं। हिन्दी भाषा के विकास के अध्ययन के लिए अपभ्रंश का साहित्य बहूपयोगी है। क्यों कि अपभ्रंश में प्राचीन अथवा आदि हिन्दी कहा जानेवाला स्वरूप पावत विद्यमान है, और अपभ्रंश में प्राचीन हिन्दी गद्य का मल सुरक्षित है। हिन्दी के लिए अपभ्रंश की यह सेवा सुरक्षा की दृष्टि से कम महत्व की नहीं है।" १. देखिए श्रीमद् राजेन्द्रसूरि - स्मारक ग्रन्थ प. ६२० पर श्री अगरचन्द नाहटा और दौलत सिह लोढा · अरविन्द ' द्वारा लिखित -“हिन्दी जैन साहित्य " लेख । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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