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________________ श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ विविध पटरानी स्थापित की । अब राजा स्वयं नवकार का जाप करता है और नागरिक लोग भी जपमाला लेकर नवकार मंत्र जपते हैं । इतना वृतान्त बतला कर वह व्यक्ति अपने मार्ग लगा । मित्र और राजकुमार आगे बढे । वे क्रमशः मथुरापूर जा पहुंचे । नगर प्रवेश करते ही प्रथम एक देवल देखा और वे दोनों उसी में प्रवेश कर गये । उन्होंने उस में देखा कि पाषाण की शूली पर एक पाषाण का पुरुष बैठाया हुआ है। दूसरी पुरुषमूर्ति समक्ष खड़ी हुई नवकार मंत्रोच्चारण कर रही है। उन्होंने एक आदमी से पूछा कि यह किसका मन्दिर है ? किसकी मूर्ति है, और किसने निर्माण करवाया ? उत्तर में उसने इस प्रकार निवेदन किया : हुंडक चोर कथा इस मथुरापुर में शिवदेव नामक शूरवीर और न्यायवान राजा राज्य करता है । वहां एक हुंडक नामक चोर रहता था । उसने एकदिन एक सेठ के घर में प्रवेश कर के चोरी की । घरधणी के कोलाहल करने पर राजपुरुषों ने तुरत आकर पदचिन्हों का पीछा कर चोर को पकड़ लिया। प्रातःकाल राजा के समक्ष पेश करने पर उसने सोचा यदि इसे छोड़ दूंगा तो नगर में मच्छगलागल मच जायगी अतः शीघ्रतापूर्वक उसे शूली का दण्ड दे दिया । हुंडक चोर को विडम्बनापूर्वक शूली पर चढादिया गया लोग कहने लगे देखो, बुरे काम का फल हुंडक को हाथोहाथ मिला । राजाने नगर में उद्घोषणा की कि - कोई व्यक्ति हुंडक का हित न करे. यदि कोई करेगा तो वह मेरा अपराधी होगा और उसकी भी हुंडक की तरह दुर्गति की जायगी । नगर का तलारक्षक गुप्त रूप से चौतरफ नजर रखने लगा कि कौन इस चोर से बात करता है । नगर के लोगों ने राजभय से उसतरफ जाना छोड दिया । हुंडक प्यास से व्याकूल होकर सूलीपर चिल्ला रहा था पर लोग सुनते हुए भी दूर से टल जाते । जब जिनदत्त सेठ कार्यवश उधर से निकला तो चोर ने पुकारा - सेठ तुम तो नगरमें शिरोमणि हो, सबका उपकार करनेवाले हो। अतः कृपा करके मुझे जल पिलाओ ! सेठ ने उसके पास आकर कहा-मेरी बात मानो मैं तम्हारे लिए लोटा , जल लाता हूं, तबतक तुम नवकार मन्त्र का जाप करो ! सेठ इतनी बात कर लोटा, पीछे से हुंडक चोर के प्राण निकल गए और वह देव हुआ । इधर चर पुरुषों ने राजा से सेठ की चुगली खाई । राजा ने सेठ जिनदत्त को चोर से वार्ता करने के दण्ड में शूली की आज्ञा दी । सेठको शूली पर ले जाया गया। हुंडक देव ने अपने ज्ञानोपयोग से सारा वृत्तांत ज्ञात कर ऋद्ध होकर नगर पर शिलाविकर्षण की और कहने लगा-मैं इस शिला को यहां गिराकर राजा व नागरिक लोगों को चूर चूर कर डालूंगा । तुम दयालू सेठ जिनदत्त की जो मेरा उपकारी है, विडम्बना करते हो तो उसका फल प्रत्यक्ष देखो ! राजाने देव से अपराध क्षमा करने की प्रार्थना की। देव ने कहा -जिनदत्त से क्षमा मांगो और पूर्व दिशा की ओर मेरा चैत्य कराओ जिसमें सूली- चोर और सामने सेठ की मूर्ति व नवकार मंत्र लिखाओ। फिर उसकी हमेशा पूजा करो, तो में तुम्हारी आपदा दूर करूंगा । राजा के बात मानने पर देव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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