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________________ विषय खंड श्री नमस्कार महामंत्र अनन्त चारित्र को प्राप्त करती है । उसको अनन्त चारित्र कहते है । ५ अक्षय स्थिति:-आयष्य कर्म की स्थिति का पूर्ण रूप से क्षय होने पर सिध्द जीवों को जन्म एवं मरण नहीं होने से वे सदा स्वस्थिति में ही रहते हैं। उसे अक्षय स्थिति कहते हैं। ६ अगुरु लघुत्व:- गोत्र कर्म का अन्त होने पर आत्मा में न गुरुत्व और न लघुत्व ही रहता है । इसलिए उसे अगुरुलघु कहते हैं । ७ अरूपित्व:-नाम कर्म का अन्त होने पर आत्मा सब प्रकार के स्थूल और सूक्ष्म रूपों से मुक्त हो कर अरूपित्व प्राप्त करती है । अरूपित्व अतीन्द्रीय याने इन्द्रियां जिसे ग्रहन करने में असमर्थ रहती हैं, ऐसी अग्राह्य वस्तु को अरुपी कहते है । ८ अनन्त वीर्य :-विमरूप अन्तराय कर्म का क्षय होने से आत्मा अनन्तवीर्य प्राप्त करती है । इन आठ गुणों से युक्त आत्मा सिद्ध कहलानी है । सिद्धात्माओं का संसार में पुनरागमन नहीं होता, क्योंकि संसार भ्रमण के कारणभूत आठों कर्म का आत्मा से सर्वथा जुदापन जो हो गया है । वाचक मुख्य श्रीमद् उमास्वातिजी महाराज ने श्री तत्वार्थाधिगम सूत्र के स्वोपक्ष भाष्य के अन्त में जो कारिकाएं लिखी है उन्हों में फरमाया है कि दग्धे बीजे यथात्यन्तं, प्रादुर्भवति नांकुरः । कर्म बीजे तथा दग्धे, न रोहति भवांकुरः ॥ जिस आत्मा ने एक बार कर्ममल से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर लिया है, वह पुनः संसार में कैसे आ सकती है ? । जिस प्रकार धान्य कण दग्ध होने पर पुनः वह नहीं ऊगता उसी प्रकार कर्म बीज के भस्म होने पर आत्मा भी पुनः उत्पत्ति और नाश को याने जन्म मरण को नहीं करती । श्री आवश्यक नियुक्ति में सिद्ध भगवान का वर्णन इस प्रकार आया है --- निच्छिन्न सव्व दुक्खा जाइजरामरणबंध विमुक्का । अव्वाबाहं सुवखं अणु हवंती सासयं सिध्दा ॥ सब दःखों को नाश करके. जन्म जरामरण और कर्मबन्ध से मक्त हवे तथा किसी भी प्रकार की बाधाओं से रहित ऐसे शाश्वत सुख का अनुभव करनेवाले 'सिध्द' कहलाते हैं। सिध्दों के नाम - सिद्ध त्ति य बुध्द त्ति य, पारगय त्ति य परंपरगय ति । उम्मुक्क कम्म कवया, अजरा अमरा असंगाय ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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