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________________ विषय खंड श्री नमस्कार महामंत्र पप मंगलं ॥१॥' इय चूलं त्ति अहिज्जंति त्ति” “तत्र प्रकृत् तदेवम्, हवइ मंगलं इत्यस्य साक्षादागमे भणितत्वात् प्रभु श्री वज्रस्वामी प्रभृति सुबहुश्रुत सुविहित संविग्न पुर्वाचार्य सम्मतत्वाच्च ' हवइ मंगलं' इति पाठेन अष्टषष्ठयक्षर प्रमाण एव नमस्कार : पठनीय:" [श्री अभिधान राजेन्द्र कोश भाग ४ पृष्ठ १८३६ ] __ इस पाठानुसार अडसठ अक्षर प्रमाण श्री नमस्कार मंत्र का स्मरण करना चाहिये । जो इस प्रकार है :_ " णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवझायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं । एसो पंच नमुक्कारो, सधपावप्पणासणो। मंगलाणंच सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं ॥१॥ इसके अडसठ अक्षरों की गणना इस प्रकार है : सत्त पय सत्त सत्त य, नव अ य अठ्ठ अट्ट नव पहुंति । इय पय अक्खरसंखा असहू पूरेई अडसट्ठी ॥ [श्री अभिधान राजेन्द्र भाग ४ पृ. १८३६ ] प्रथम पद के सात, दुसरे पद के पांच, तीसरे पद के सात, चौथे पद के सात, पांचवें पद के नव, छटे पद के आठ, सातवें पद के आठ, आठवें पद के आठ और नवमें पद के नौ। इस प्रकार यह पदाक्षर संख्या जोडने से (७-५-७-७ -९-८-८-८-९= ६८ ) अडसठ अक्षर होते हैं। शास्त्रीय आज्ञानुसार ६८ अक्षर प्रमाण नमस्कार का पठन होना ही चाहिये इसलिये लिखा है कि :" त्रयस्टत्रिंशदक्षरप्रमाण चूलिका सहितो नमस्कारो मणनीय इत्युक्तं भवति" (श्री अभिधान राजेन्द्र भा. ४ पृ. १८३६) अर्थात ३३ अक्षर प्रमाण चूलिका सहित नमस्कार मंत्र का स्मरण करना चाहिये । जो लोग ऐसा कहते है कि ३५ अक्षर प्रमाण ही नमस्कार मंत्र पठनीय है । उनको उक्त प्रमाण का तात्पर्य समझना चाहिये । नमस्कार मंत्र का संक्षिप्त अर्थ:णमो अरिहंताणं : नमस्कार हो अरिहंतों के लिये। णमो सिद्धाणं:-नमस्कार हो सिद्धों के लिये। णमो आयरियाणं : नमस्कार हो आचार्य महाराज के लिये । णमो उवज्झायाणं :-नमस्कार हो उपाध्यायजी महाराज के लिए। णमो लोए सव्व साहूणं : नमस्कार हो ढाई द्वीप प्रमाण लोक में विचरने वाले समस्त साधू मुनिराजों के लिये। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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