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________________ विशेषज्ञ कोई न रहा। यह स्थिति वीर निर्वाण के एक हजार श्रमणसमवसरण में दोनों वाचनाओं के सिद्धांतों का परस्पर वर्ष बाद हुई। किन्तु दिगम्बरों के कथनानुसार वीर निर्वाण समन्वय किया गया और जहाँ तक हो सका भेदभाव मिटाकर सं०६६८ के बाद हुई। उन्हें एकरूप कर दिया । और जो महत्त्वपूर्ण भेद थे उन्हें पाठान्तर के रूप में टीका-णिओं में संग्रहीत किया। (ब) माथुरी वाचना कितनेक प्रकीर्णक ग्रन्थ जो केवल एक ही वाचना में थे वैसे-केनन्दी सूत्र की चूणि में उल्लेख है कि द्वादशवर्षीय दुप्काल वैसे प्रमाण माने गये।" के कारण ग्रहण-गुणन-अनुप्रेक्षा के अभाव में सूत्र नष्ट हो यही कारण है कि मूल और टीका में हम 'वायणंतरे गया। आर्य स्कंदिल के सभापतित्व में बारह वर्ष के दुष्काल पूण' या 'नागार्जुनीयास्तु पठन्ति' जैसे उल्लेख पाते हैं । ३५ के बाद साधसंघ मथुरा में एकत्र हुआ और जिसको जो याद यह कार्य वीरनिर्वाण सं० १६० में हुआ और वाचनान्तर था उसके आधार पर कालिकश्रुत को व्यवस्थित कर लिया के अनुसार ६६३ में हआ। वर्तमान में जो आगम ग्रंथ उपलब्ध गया। क्योंकि यह 'वाचना' मयुरा में हुई अतएव यह 'माथुरी हैं उनका अधिकांश इसी समय में स्थिर हुआ था। वाचना' कहलाई । कुछ लोगों का कहना है कि सूत्र तो नष्ट नन्दी सत्र में जो सूची है उसे ही यदि वलभी में नहीं हुआ किंतु प्रधान अनुयोगधरों का अभाव हो गया । सिर्फ पुस्तकारूढ सभी आगमों की सूची मानी जाय तब कहना स्कंदिल आचार्य ही बचे थे जो अनुयोगधर थे। उन्होंने होगा कि कई आगम उक्त लेखन के बाद भी नष्ट हुए हैं । क्योंकि मथुरा में अन्य साधुओं को अनुयोग दिया अतएव खास करके प्रकीर्णक तो अनेक नष्ट हो गये हैं। सिर्फ वीरमाथरी वाचना कहलाई।। स्तव' नामक एक प्रकीर्णक और पिण्डनियुक्ति ऐसे हैं जो इससे इतना तो स्पष्ट है कि दुबारा भी दुष्काल के कारण नन्दीसूत्र में उल्लिखित नहीं हैं किन्तु श्वेताम्बरों का आगमश्रुत की दुरवस्था हो गई थी। इस बार की संकलना का श्रेय रूप से मान्य हैं। आचार्य स्कंदिल को है । मुनि श्री कल्याणविजयजी ने आचार्य स्कंदिल का यगप्रधानत्व-काल वीर निर्वाण संवत ८२७ से (४) पूवा के आधार से बने ग्रन्थ ८४० तक माना है। अतएव यह वाचना इसी बीच हुई दिगम्बर अऔर श्वेताम्बर दोनों के मत से पूर्वो का होगी। इस वाचना के फलस्वरूप आगम लिखे भी गये। विच्छेद हो गया है किन्तु पूर्वगत श्रुत का विषय सर्वथा लुप्त हो गया हो यह बात नहीं क्योंकि दोनों संप्रदायों में कुछ ऐसे (क) वालभी वाचना ग्रन्थ और प्रकरण मौजूद हैं जिनका आधार पूर्वो को बताया ___ जब मथुरा में वाचना हुई थी उसी काल में वलभी में जाता है । दिगम्बर आचार्यों ने 'पूर्व' के आधार पर ही षटभी नागार्जुन सूरि ने श्रमणसंघ को एकत्र करके आगमों को खण्डागम और कषायप्राभृत की रचना की है यह बताया व्यवस्थित करने का प्रयत्न किया था। और वाचक नागार्जुन जायगा । इस विषय में श्वेताम्बर मान्यता का वर्णन किया और एकत्रित संघ को जो-जो आगम और उनके अनुयोगों के जाता है। उपरांत प्रकरण ग्रन्थ याद थे वे लिख लिये गये और विस्तृत श्वेताम्बरों के मत से दष्टिवाद में ही संपूर्ण वाङमय का स्थलों को पूर्वापर संबंध के अनुसार ठीक करके उसके अनुसार अवतार होता है किन्तु दुर्बलमति पुरुष और स्त्रियों के लिये वाचना दी गई।३३ इसमें प्रमुख नागार्जुन थे अतएव इस ही दृष्टिवाद के विषय को लेकर ही शेष ग्रन्थों की सरल वाचना को'नागार्जुनीय वाचना' भी कहते हैं । रचना होती है । इसी मत को मान करके यह कहा जाता है कि गणधर सर्व प्रथम पूर्वो की रचना करते हैं और उन्हीं देवधिगणि का पुस्तकलेखन पूर्वो के आधार से शेष अंगों की रचना करते हैं । "उपर्युक्त वाचनाओं के संपन्न हुए करीब देढ़ सौ वर्ष से यह मत ठीक प्रतीत होता है किन्तु इसका तात्पर्य इतना अधिक समय व्यतीत हो चका था, उस समय फिर वलभी ही समझना चाहिए कि वर्तमान आचारांगादि से पहले जो नगर में देवधिगणि क्षमाश्रमण की अध्यक्षता में श्रमणसंघ शास्त्रज्ञान श्रुतरूप में विद्यमान था वही पूर्व के नाम से प्रसिद्ध इकट्ठा हआ और पूर्वोक्त दोनों वाचनाओं के समय लिखे हुआ और उसी के आधार पर भगवान् महावीर के उपदेशों गये सिद्धान्तों के उपरांत जो जो ग्रन्थ, प्रकरण, मौजूद थे को ध्यान में रख कर द्वादशांग की रचना हई और उन पूर्वो उन सब को लिखाकर सुरक्षित करने का निश्चय किया। इस को भी बारहवें अंग के एक देश में प्रविष्ट कर दिया गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012073
Book TitleShantilal Vanmali Sheth Amrut Mahotsav Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherSohanlal Jain Vidya Prasarak Samiti
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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