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________________ विचार उपस्थित होने पर यदि हम घृणा या तिरस्कार का व्यक्तित्व की तीसरी दुर्बलता है। जैन-दृष्टि से इसका अर्थ अनुभव करते हैं, उन विचारों को नहीं सुनना चाहते या उन होगा हमें कर्म-सिद्धान्त पर विश्वास नहीं है। व्याकुलता, पर सहानुभूति के साथ मनन नहीं कर सकते तो यह दूसरी घबराहट एवं उत्साहहीनता के दो कारण हैं। या तो हम दुर्बलता है । जैन-दृष्टि से इसका अर्थ होगा हमने अनेकांत को परावलम्बी हैं अर्थात् हम मानते हैं कि सुख की प्राप्ति आत्मा जीवन में नहीं उतारा। को छोड़कर अन्य तत्वों पर अवलम्बित है, अथवा यह मानते (३) प्रतिकूल वातावरण-इसके तीन भेद हैं (क) हैं कि आत्मा दुर्बल होने के कारण प्रतिकूल परिस्थिति एवं इष्ट की अप्राप्ति-अर्थात् धन-संपत्ति, सुख-सुविधाएँ, परि- विघ्न-बाधाओं पर विजय प्राप्त कर नहीं सकता। जैन-धर्म जन आदि जिन वस्तुओं को हम चाहते हैं उनका न मिलना। में आत्मा को अनन्त चतुष्टयात्मक माना गया है। सुख को (ख) अनिष्ट की प्राप्ति--अर्थात् रोग, प्रियजन का वियोग, बाहर हूँढ़ने का अर्थ है हमें आत्मा के अनंत सुख में विश्वास सम्पत्तिनाश आदि जिन बातों को नहीं चाहते उनका उप- नहीं है। इसी प्रकार विघ्न-बाधाओं के सामने हार मानने स्थित होना । (ग) विघ्न-बाधाएँ—अभीष्ट लक्ष्य की सिद्धि का अर्थ है हमें आत्मा के अनन्त वीर्य में विश्वास नहीं है। में अड़चनें आना। इन परिस्थितियों में घबरा जाना आचार्य श्री जिनविजय जी के नेतृत्व में जेसलमेर के प्राचीन ज्ञान-भण्डारों के हस्तलिखित प्रतों की प्रतिलिपि-लेखन और शोधकार्य के लिए कार्यरत विद्वद्गण । चित्र में आचार्य जिनविजय जी के साथ बायीं ओर बैठे हए श्री शान्तिभाई, एवं महामहोपाध्याय पं० के० के० शास्त्री, आदि दिखाई देते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.012073
Book TitleShantilal Vanmali Sheth Amrut Mahotsav Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherSohanlal Jain Vidya Prasarak Samiti
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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