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________________ विवेकहष्टि को वंदना मैं कृतज्ञ हूँ, नतमस्तक हूँ जेतपुर में पैदा हुआ और जैन-संस्था और जैन-समाज में काम करते रहने से मेरे में जैन संस्कारों का सिंचन ज्यादा हुआ। इसके लिए समाजमाता-स्थानकवासी जैन कॉन्फरन्स-द्वारा स्थापित और संचालित जैन ट्रेनिंग कॉलेज का आजन्म कृतज्ञ रहूँगा। इन्हीं जैन-संस्कारों के कारण मैं नास्तिक में से आस्तिक बन सका । यद्यपि प्रारंभिक जैन-संस्कारों में साम्प्रदायिकता का आधिक्य ज्यादा था और सामाजिकता का कम । इसी कारण प्रारंभ में मैं कट्टर संप्रदायवादी था लेकिन जैसे-जैसे धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन, चितन और मनन बढ़ता गया त्यों-त्यों साम्प्रदायिकता के स्थान पर सामाजिकता बढ़ती गई और फिर समन्वय की वृत्ति और प्रवृत्तियों से मानवता का मूल्यांकन भी बढ़ता गया। मंगलमूर्ति भ० महावीर के मानवतामूलक-आचार में अहिंसा और विचार में अनेकान्तवादमंगलधर्म के-सन्देश को समझता गया और जीवन में उतारता गया कि 'जन-धर्म कोई मत, सम्प्रदाय या बाडाबंदी से आबद्ध नहीं है लेकिन वह तो वस्तुधर्म होने से विश्वधर्म है।' अहिंसा द्वारा विश्वशान्ति और अनेकान्त द्वारा विश्वमैत्री स्थापित करने में वह समर्थ है। ऐसा मेरा विश्वास दृढ़ होता गया। भ. महावीर की तेजस्वी अहिंसा, म. बुद्ध की प्रज्ञामूलक करुणा और महात्मा गांधी की सत्यमूलक सर्वधर्मसमभाववृत्ति-यह अहिंसा-त्रिमूर्ति मेरे जीवनादर्श बन गये । भगवान महावीर की समतामूलक समन्वय दृष्टि को 'वसुधैव कुटुम्बकम्' अथवा विश्वास्मैक्य' को पर्यायवाची समझने लगा। इस प्रकार मैं साम्प्रदायिक वृत्ति में से निकलकर सामाजिकता और समन्वयदष्टिका परमोपासक बन गया और 'जनत्व की साधना' को जीवन-साधना समझने लगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012073
Book TitleShantilal Vanmali Sheth Amrut Mahotsav Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherSohanlal Jain Vidya Prasarak Samiti
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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