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________________ जीवनशिल्पी सद्गरुदेव श्री कानजी स्वामी संस्कृति, साहित्य और जैन-विद्या के आजीवन सन्निष्ठ समाजसेवक साहित्योपासक श्री शान्तिभाई लेखक-श्री महासुखलाल जे० देसाई संपादक 'जैन-प्रकाश' पाक्षिक, बंबई. श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए श्री शान्तिभाई जेतपुरनिवासी वर्तमान में दिल्ली के श्री शान्तिलाल किया। साक्षात्कार-नाटिका, जवाहर-व्याख्यान-संग्रह भाग वनमाली शेठ ने अपने यशस्वी ७५ वर्ष पूर्ण करके ७६ वर्ष में १-४, जवाहर-ज्योति, धर्म और धर्मनायक, ब्रह्मचारिणी, मंगल पदार्पण किया है इसके लिए हार्दिक अभिनन्दन ! श्री विद्यार्थी और युवकों से, अहिंसा का राजमार्ग, महावीरांक, शान्तिभाई ने १५ वर्ष की उम्र में ही श्री अ०भा० श्वे स्था० जैन शिक्षण पत्रिका का बाल-विशेषांक, उत्थान, अहिंसा-पथ जैन कॉन्फ्रन्स द्वारा संस्थापित जैन ट्रेनिंग कॉलेज बीकानेर- आदि अनेक ग्रन्थों एवं पत्रों का संपादन और प्रकाशन किया। जयपुर में शास्त्राभ्यास करके 'जैन विशारद' और 'न्यायतीर्थ' पाँच वर्ष पर्यन्त श्री पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध-संस्थान परीक्षा उत्तीर्ण की। बाद जैनागम और प्राकृत-भाषा का (बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय) में संचालक के रूप में सेवा विशेष अभ्यास अमदावाद में पं० वेचरदासजी के पास रहकर की और यहाँ पर 'जैन कल्चरल रिसर्च सोसायटी' एवं जयकिया। श्री शान्तिभाई में विद्या-अभ्यास की विशेष तमन्ना हिन्द को-ऑपरेटिव सोसायटी की स्थापना की। यहाँ पर थी अत: संस्कृत, प्राकृत, पाली के भाषाज्ञान द्वारा जैनधर्म, अनेक शोध-पत्रिकाओं का प्रकाशन भी किया।बनारस मे प्रज्ञाबौद्ध-धर्म और हिन्दू धर्म के तुलनात्मक अध्ययन के लिए चक्षु पं० सुखलालजी एवं पं० दलसुखभाई का सान्निध्य और विश्वकवि श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर की विश्व-भारती-शान्ति- मार्गदर्शन प्राप्त हुआ यह उनकी एक महान् उपलब्धि थी। निकेतन में महामहोपाध्याय श्री विधूशेखर भट्टाचार्य, आचार्य तत्पश्चात् छः वर्ष पर्यन्त स्था० जैन कान्फ्रन्स, जैन गुरुश्री जिनविजयजी तथा आचार्यश्री क्षितिमोहन सेन के कुल, व्यावर और समाज की अन्य संस्थानों में भी काम संरक्षण में चार वर्ष पर्यन्त अभ्यास किया। बौद्ध त्रिपिटक किया। जेसलमेर में आ० जिनविजयजी के नेतृत्व में प्राचीन पढ़ने के लिए सिंहली लिपि भी सीखी। यहाँ पर उनको विश्व ज्ञान-भंडारों के हस्तलिखित ग्रंथों के लेखन-संपादन कार्य का मान्य विद्वानों के परिचय में आने का स्वर्णावसर मिला। बहुमूल्य अनुभव मिला। कॉन्फरन्स के मानद मन्त्री और यहाँ धम्मसुत्तं (महावीर-वाणी) का संकलन-संपादन कर 'जैन-प्रकाश' हिन्दी-गुजराती साप्ताहिक के कई वर्षों तक विद्याभवन के 'स्नातक' बने। संपादक के रूप में सेवा प्रदान की। ज्ञानोपार्जन की जिज्ञासा पूर्ण होने के बाद उन्होंने १० इसके बाद उनके जीवन में एक नया मोड़ आया। वर्ष पर्यन्त सामाजिक, साहित्यिक एवं धार्मिक विविध आचार्य श्री काकासाहब कालेलकर की छत्रछाया में गांधी संस्थानों में सेवा करने के साथ साहित्य-संपादन कार्य भी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा, मंगलप्रभात, श्रम-साधना केन्द्र, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012073
Book TitleShantilal Vanmali Sheth Amrut Mahotsav Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherSohanlal Jain Vidya Prasarak Samiti
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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