SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मेरे सन्मित्र श्री शान्तिभाई के अमृत-महोत्सव के सुखद क्षेत्रों में सक्रिय सेवारत हैं और अग्रणी हैं। उनका अभिनंदन समाचार पढ़कर मैं आनंदविभोर हो गया। राष्ट्र, समाज एवं करके हम समाज को अभिनंदित कर रहे हैं। उनकी वही धर्म की सेवा के लिए जिन्होंने अपना समग्र जीवन समर्पित हँसमुख वत्ति आज भी यथावत कायम रही है यह संतोष का कर दिया है ऐसे सन्निष्ठ समाजसेवी का सम्मान होना ही विषय है। चाहिए। श्री शान्तिभाई ने सन्मति साहित्य निधि और जैन -स्व० नानालाल रूनवाल, झाबुआ सिद्धान्त-प्रशिक्षण संस्थान' की जो समाजोपयोगी योजना प्रस्तुत की है, उससे सामाजिक चेतना पैदा होगी और साथ सन्निष्ठ समाजसेवी शान्तिभाई ऐसे कर्मयोगी एवं विद्वान ही जैनोदय का नवयुग भी प्रारंभ होगा। हैं, ऐसा साथ में रहते हुए भी हम उन्हें समझ नहीं पाये यह यह सम्मान व्यक्तिगत नहीं है। यह तो समग्र जैन-समाज उनकी कैसी निरभिमानता है ! उनकी सेवाभावना और का सम्मान है । समाज-सेवा के इस पुनीत अवसर पर मैं तपश्चर्या फलीभूत हो रही है यह देखकर हर्षविभोर हो जाते. उपस्थित होने का अवश्य प्रयत्न करूंगा और समाजमाता के हैं। उनका यह अमृतोसव सफल हो-यही प्रार्थना । चरणों में श्रद्धासुमन अर्पित करूँगा। -प्रभाकर एच० कामदार, अहमदावाद ___ मेरा आयोजकों से साग्रह निवेदन है कि इस सम्मान सौजन्यमूर्ति-सरलात्मा शान्तिभाई का राष्ट्रीय सम्मान समारोह के प्रसंग पर सामाजिक उत्थान का कोई योजनाबद्ध होने जा रहा है यह हम सब जेतपुरवासियों के लिए गौरव कार्यक्रम निश्चित करे और सम्मान-समारोह सम्मोह या का विषय है। यावच्चन्द्र-दिवाकरौ-पू० शान्तिभाई की संभ्रम का कारण नहीं अपितु समाजोत्थान का एक प्रेरक प्राण-बल बने यही अन्तर्भावना है। समाजोत्थान के कार्य में धवल कीर्ति चतुर्दिशा में फैलती रहे—यही भावना। -मोहनलाल देसाई, इन्दौर सक्रिय सहयोग देना हम सबका नैतिक कर्तव्य है। मैं आज ८१ वर्षीय है फिर भी सामाजिक एवं धार्मिक तीन वर्ष पर्यन्त शान्ति-निकेतन की आदिकुटीर में साथ कार्य में एक युवक हृदय की भांति अग्रगामी रहता हूँ । संतोष रहने का, विचार-विनिमय करने का और सहाध्यायी के रूप का विषय है कि मेरे कुटम्बीजन विशेषतः मेरे सुपुत्र सामाजिक- में आनंद-कल्लोल करने का जो हमें अवसर मिला उसकी सेवा के कार्य में तन, मन, धन से सहयोग देने में मुझे प्रेरित मधुर स्मति आज भी स्मति-पट पर आ जाती है तब ही नहीं, प्रोत्साहित भी करते हैं-यह भी सद्भाग्य ही है। आनंदाश्रु प्रवाहित हो जाते हैं । श्री शान्तिभाई प्रगति-पथ पर अन्त में, श्री शान्तिभाई चिरायु हों और समाजसेवा सतत अग्रसर होते रहें यही अन्तर्भावना। करते रहें यही मेरी हार्दिक शुभाशीष है। -जयंतिलात आचार्य, अहमदाबाद शुभेच्छुक-शामलदास जटाशंकर शेठ, मस्कत श्री शान्तिलाल वनमाली शेठ का अमृत-महोत्सव एक ऐसे ज्ञानपीठ के प्रति कृतज्ञता-ज्ञापन है जिसने परम भागवत शान्तिभाई के व्यक्तित्व और कर्तृत्व से मैं बहुत ही पुरुष की गरिमा को अभिनव आयाम दिये हैं। प्राणियों में प्रभावित हैं। वास्तव में श्री शान्तिभाई एक महान व्यक्तित्व, मैत्री, और विपरीत परिस्थितियों में माध्यास्थवृत्ति धीरोदात्त कर्मठ समाजसेवी, धर्मपरायण, सूझबूझ के धनी और उच्च- ' कोटि के विभिन्न भाषाओं के विद्वान हैं। ऐसे सरल, निष्कपट, पुरुषों के स्वाभाविक गुण हैं। अनेक सद्वृत्तियों के पारमिता संगम श्री शेठ के महनीय-पथ का अनुसरण कर हमारी पीढ़ी विचारशील गांधीवादी समाजसेवक का अभिनंदन कर मैं निःश्रेयस् के मार्ग पर अग्रसर होगी; इसी अभ्यर्थना के साथ धन्यता का अनुभव करता हूँ। अमृतपुरुष श्री शान्तिलाल वनमाली शेठ के अमर यश एवं -जे० डी० मित्तल, दिल्ली सूदीर्घ जीवन के लिये शासनदेव से प्रार्थना करता हूँ और श्री शान्तिभाई जब १८ वर्षीय तेज-तर्रार, प्रसन्नवदन उनके श्रीचरणों में-भारतीय जैन मिलन 'परिवार' की सश्रद्ध युवक थे (जो अब ७५ वर्षीय नवयुवक हैं) तब उनके विनयाञ्जलि अर्पित करता हूँ। परिचय में आया था। शान्तिभाई अब भी सभी सामाजिक -जे० डी० जैन 'अध्यक्ष' भारतीय जैन मिलन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012073
Book TitleShantilal Vanmali Sheth Amrut Mahotsav Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherSohanlal Jain Vidya Prasarak Samiti
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy