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________________ के सभी प्राणियों के प्रति आत्मवत् भाव उत्पन्न हो गया है, का प्रकटन सहज होगा और धर्म साधना का क्षेत्र सेवा का तब यह संभव नहीं है कि व्यक्ति दूसरों की पीड़ाओं का मूक क्षेत्र बन जायेगा। दर्शक रहे । क्योंकि उसके लिए कोई पराया रह ही नहीं गया जैन धर्म के उपासक सदैव ही प्राणी-सेवा के प्रति है। यह एक आनुभाविक सत्य है कि व्यक्ति जिसे अपना मान समर्पित रहे हैं। आज भी देश भर में उनके द्वारा संचालित । लेता है, उससे दुख और कष्टों का मूक दर्शक नहीं रह सकता पशु सेवा सदन (पिंजरापोल, चिकित्सालय) शिक्षा संस्थाएँ है । अतः अहिंसा और सेवा एक दूसरे से अभिन्न हैं । अहिंसक और अतिथि-शालाएं उनकी सेवा-भावना का सबसे बड़ा होने का अर्थ है-सेवा के क्षेत्र में सक्रिय होना। जब हमारी प्रमाण है। उसका श्रमण-वर्ग भी इनका प्रेरक तो रहा है धर्म साधना में सेवा का तत्व जुड़ेगा तब ही हमारी साधना किन्तु यदि वह भी सक्रिय रूप से इन कार्यों से जुड़ सके तो में पूर्णता आयेगी। हमें अपनी अहिंसा का हृदय शून्य नहीं भविष्य में जैन समाज मानव सेवा के क्षेत्र में एक मानदण्ड बनने देना है अपितु उसे मैत्री और करुणा से युक्त बनाना स्थापित कर सकेगा। है। जब अहिंसा में मंत्री और करुणा के भाव जड़ेगे तो सेवा सादा जीवन और उच्च विचार :: श्री शान्तिभाई का व्यक्तित्व श्री शान्तिभाई वनमाली शेठ उच्च जीवन-मूल्यों के लिए समर्पित मूक समाजसेवी रहे हैं। उनके जीवन में विद्या, सेवा और साधना की त्रिवेणी का संगम हुआ है। व्यक्ति अपने श्रम और साधना से कितना ऊपर उठ सकता है, इसका प्रमाण उनका और उनके परिवार का जीवन है। आज सरस्वती और लक्ष्मी दोनों की उन पर पूर्ण कृपा है। फिर भी वे आज वैसे ही सरल, सहज और सहृदय हैं, जैसे पहले थे। पार्श्वनाथ विद्याश्रम का यह सौभाग्य रहा है कि अपने निर्माण-काल में उसे शान्तिभाई जैसा निष्ठावान व्यवस्थापक मिला था। विद्याश्रम परिवार आज भी उन दिनों को अपने स्मृतिपटल में संजोये हुए हैं । आज जब उनका यह अमृतमहोत्हव मनाया जा रहा है हम सब अत्यन्त प्रफुल्लित हैं। विद्याश्रम परिवार यही कामना करता है कि वे शतायु हो और उनका आशीर्वाद और मार्गदर्शन हमें सदैव उपलब्ध होता रहे। -डॉ० सागरमल जैन और पार्श्वनाथ विद्याश्रम परिवार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012073
Book TitleShantilal Vanmali Sheth Amrut Mahotsav Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherSohanlal Jain Vidya Prasarak Samiti
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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