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________________ ७८ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व १.५ कालकाचार्य-कथा __जैन कथा-साहित्य में प्रभावक आचार्यों पर लिखी गई रचनाओं में कालकाचार्य' की कथा अत्यधिक प्रसिद्ध रही है। कालकाचार्य के जीवनवृत्त में अनेक क्रान्तिकारी घटनाएँ घटित हुईं। उन घटनाओं ने जैन समाज को इतना अधिक प्रभावित किया कि अनेक जैनाचार्यों ने स्थान-स्थान पर उन घटनाओं का उल्लेख किया और उन पर स्वतन्त्र कृतियाँ निबद्ध कीं। कालकाचार्य पर लिखित कृतियों में ३० कृतियाँ तो अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं। विदेशी-विद्वानों को भी कालक की कथा इतनी अधिक पसन्द आई कि उन्होंने तो प्राकृत-संस्कृत में लिखित कुछेक कालिक-कथाओं का अंग्रेजी में भाषान्तर करके प्रकाशित किया है।३ कविवर समयसुन्दर कृत कालकाचार्य-कथा' भी जैन समाज में काफी लोकप्रिय रही है और कालक-कथा-साहित्य में अपना गौरवपूर्ण स्थान रखती है। इस कृति की हस्तलिखित प्रति अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर, जैन भवन, कोलकाता आदि अनेक ग्रन्थ-संग्रहालयों में एवं हमारे संग्रह में भी उपलब्ध है। कुछेक प्रतियाँ तो सचित्र भी उपलब्ध होती हैं। प्रस्तुत कृति वि० सं० १६६६ में राउल तेजसी के राज्य में वीरमपुर नगर में रची गई। लेखक ने कथान्त में इसका निर्देश किया है - श्रीमविक्रमसंवति रसर्तृशृङ्गारसंख्यकेसहसि। श्रीवीरमपुरनगरे, राउलनृपतेजसी-राज्ये ॥ सम्पूर्ण कथा ४४१ श्लोक-परिमाण है। कथा गद्य में हैं। कथा के प्रारम्भ में कथाकार ने यह उल्लेख किया है कि आज तक तीन कालकाचार्य हुए हैं। प्रथम कालकाचार्य वीर निर्वाण संवत् ३७६ में हुए थे। इनका उपनाम श्यामाचार्य था। इन्होंने 'प्रज्ञापना-सूत्र' की रचना की और ब्राह्मणरूपधारी सौधर्मेन्द्र के सम्मुख निगोद का विवेचन किया था। कुछेक विद्वान् इन्हें वीर निर्वाण संवत् ३२० अथवा ३२५ में भी हुआ मानते हैं। द्वितीय कालकाचार्य वीरनिर्वाण के ४५३ वर्ष पश्चात् हुए। ये सरस्वती के भाई, राजा गर्दभिल्ल के विजेता और बलभद्र-भानुमित्र के मामा थे। तृतीय कालकाचार्य वी० नि० सं० ९९३ अर्थात् वि० सं० ५२३ में हुए थे। इन्होंने महावीर १. द्रष्टव्य -(क) वृहत्कल्पसूत्र, विभाग १, पत्र ७३-७४ (ख) व्यवहार -चूर्णि,दसम उददेशक, (ग) आवश्यक-सूत्र,पूर्वभाग, पृष्ठ ४९५-९६ २. द्रष्टव्य - श्री कालिकाचार्य - कथा-संग्रह, कुंवरजी हीरजी छेड़ा, नलिया (कच्छ) से प्रकाशित। ३. द्रष्टव्य-कालककथा,संपादक-ब्राउन और प्रकाशक-फ्रिअर गैलेरी ऑफ आर्ट, वाशिंगटन। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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