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________________ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व हर्षकुशल के शिष्य हर्षसागर तथा प्रशिष्य ज्ञानतिलक एवं पुण्यतिलक भी समर्थ साहित्यकार हुए हैं। ज्ञानतिलक के शिष्य विनयचन्द्र अठारहवीं शताब्दी के प्रमुख कवि थे। १८.४ मेघकीर्त्ति- इनकी रचित एक भी कृति उपलब्ध नहीं है। इनकी शिष्य-परम्परा में ही आलमचन्द जैसे असाधारण कवि हुए और कस्तूरचन्द्र तथा कीर्तिसागर भी प्रखर विद्वान् हुए हैं। १८.५ महिमासमुद्र - आप कवि के प्रिय शिष्य थे। आपके लिए ही कवि ने वि० सं० १६६७ में उच्च नगर में 'श्रावकाराधना' ग्रन्थ लिखा था। आपके शिष्यों में धर्मसिंह द्वारा रचित 'थावच्चा-चौपाई' विशेष वर्णनीय है। इनके पौत्रशिष्य विद्याविजय भी उद्भट पण्डित थे। आलीजा-गीतम् आदि इन्हीं के द्वारा प्रणीत हैं। कवि समयसुन्दर के अन्य शिष्यों में सुमतिकीर्ति, माईदास आदि का उल्लेख भी प्रशस्तियों में उपलब्ध होता है। कवि के समान ही कवि का शिष्य-परिवार भी असाधारण प्रतिभाधारक, प्रखर विद्वान्, समर्थ साहित्य-सर्जक और साधना-प्रिय था। कवि की शिष्य-संतति के बारे में नाहटा-बन्धु लिखते हैं कि इनका शिष्य-परिवार खूब विस्तृत होकर फूला-फला। उसमें सैकड़ों साधु-यति हुए, जिनमें कई अच्छे गुणी व्यक्ति थे। महोपाध्याय विनयसागर ने कवि के शिष्य परिवार की एक तालिका बनाई है, जो पृष्ठ ६९-७० पर द्रष्टव्य है। यद्यपि तालिका में निर्दिष्ट शिष्य-परम्परा कवि से लेकर वर्तमान समय पर्यन्त है, लेकिन यह भी सम्पूर्ण नहीं कही जा सकती है। यह तालिका केवल प्राप्त सन्दर्भो के आधार पर ही विनयसागरजी ने बनाई है। वे लिखते हैं कि अनुमानतः आपके शिष्यप्रशिष्यादि की संख्या विपुल ही थी, कौन-कौन और किस-किस नाम के शिष्य थे, उल्लेख नहीं मिलता। कतिपय ग्रन्थों के आधार पर बनाई गई इस तालिका से कवि की शिष्य-परम्परा का कुछ आभास ही हमें होता है। समयसुन्दर की शिष्य-परम्परा को देखने से ऐसा ज्ञात होता है कि वह यतियों की परम्परा है। अत: यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है कि समयसुन्दर स्वयं यति थे या मुनि। यदि हम गम्भीरतापूर्वक इस प्रश्न पर विचार करें, तो हमें दोनों ही प्रकार के प्रमाण उपलब्ध हो जाते हैं। शिष्य-परम्परा का यति होना, शास्त्र आदि का विक्रय करना, गुरु-धन की चर्चा और क्रियोद्धार - ये सब तथ्य उन्हें यति-परम्परा के निकट बैठाते हैं, किन्तु इसके विपरीत उनके द्वारा 'गद्दी' का उल्लेख न होना, मुनि की भांति विहारी होना, १. सीताराम-चौपाई, भूमिका, पृष्ठ ५२ २. द्रष्टव्य - समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, महोपाध्याय समयसुन्दर, पृष्ठ ३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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