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________________ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व जिन्होंने समयसुन्दर के गच्छ पर अनेक आक्षेप लगाये; परन्तु समयसुन्दर की विशाल हृदयता तथा उदारता ने उनमें भी गुण ही देखे। १६.४.३ दिगम्बरों से पारस्परिक सम्बन्ध- श्वेताम्बर तथा दिगम्बर – ये दो जैन धर्म के प्रधान सम्प्रदाय है। दोनों में कुछ विवादास्पद विषय भी हैं, लेकिन कवि भावुकता और औदार्य के कारण दिगम्बर तीर्थों, मन्दिरों, मुनियों के प्रति भी वैसी ही श्रद्धा-भक्ति रखते थे, जैसी श्वेताम्बर तीर्थों, मन्दिरों, मुनियों के प्रति। कवि के यात्रा-संस्मरण-गीतों में ऐसे भी गीत हैं, जिनसे यह विदित होता है कि कवि ने दिगम्बरों के प्रसिद्ध तीर्थस्थलों की भी यात्रा एवं सश्रद्धा भाव-अर्चना की थी। जैसे - चन्द्रपुरी अवतार, लक्ष्मणा माता मल्हार, । चन्द्रमा लांछन सार, उरु अभिराम में। वदन पुनिमचन्द, वचन शीतलचन्द, महासेन नृपचन्द, नवविधि नाम में। तेज करइ झिब-झिब, फटित रतनबिंब, सांद्यो है............दिगम्बर धाम में। समयसुन्दर हम तीरथ कहइ उत्तम, - चन्द्रप्रभ भेट्यौ हम, चांदवारि गाम में॥१ कवि की साम्प्रदायिक उदारता, भावुकता और गुणग्राहकता कवि के उत्तम व्यक्तित्व के प्रतीक हैं। अत: वे गच्छातीत ही नहीं, सम्प्रदायातीत भी थे। १६:५ आचारनिष्ठा आचरण और व्यवहार का वह रूप जो कुछ शास्त्रीय नियमों, परम्पराओं, सिद्धान्तों आदि के आधार पर स्थित होता है तथा धर्म-शास्त्र के अनुसार जिसका पालन आवश्यक समझा जाता है, आचार है। धर्म-शास्त्रों में बतलाए हुए आचार (क्रियाओं) का अच्छी तरह और नियमित रूप से पालन करने वाला आचार-निष्ठ कहलाता है। कविप्रवर समयसुन्दर स्वयं तो आचार-निष्ठ थे ही, साथ ही अपने शिष्यों-प्रशिष्यों को भी आचार-निष्ठ बनने के लिए निरन्तर प्रेरणा देते रहते थे। क्योंकि कवि आचारयुक्त ज्ञान को ही अधिक महत्त्व देते थे। उनका वचन है - किरिया सहित जो न्यान, हुवइ तो अति परधान। सोनउ नइ सुहृत ए, संख दूधइ भरयउ ए॥२ आवश्यक-नियुक्ति में इसी तथ्य का उल्लेख करते हुए कहा है कि जिस प्रकार चन्दन का भार उठानेवाला गधा केवल भार ढोने वाला है, उसे चन्दन की सुगन्ध का कोई १. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, चौबीस जिन सवैया, पृष्ठ १५ २. वही, श्री ज्ञानपंचमी बृहत्स्तवनम्, पृष्ठ २३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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