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________________ पुरोवाक् प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, हिन्दी और अनेक प्रादेशिक भाषाओं के विकास में जैन साहित्यकारों की एक समृद्ध परम्परा रही है। उनके महत्त्वपूर्ण योगदान का शोधपरक दृष्टि से अध्ययन करना नितान्त अपरिहार्य है। जैन साहित्यकारों ने साहित्य को सदैव आध्यात्मिक, व्यवस्थामूलक और नैतिक पृष्ठभूमि में प्रतिष्ठित करने का प्रयत्न किया है। उन्होंने साहित्य के शाश्वत मूल्यों को ही निरन्तर स्थापित किया तथा दूषित उद्वेगों एवं कल्पनाओं से अपनी सृजनात्मक शक्ति को परे रखा। उन्होंने साहित्य को समाज के शाश्वत तथा स्वस्थ जीवन के प्रदर्शक के रूप में ही ग्रहण किया था। अतः उनका साहित्य दिशा - भ्रमित जीवन के लिए स्थायी प्रकाश स्तम्भ के समान है । महोपाध्याय समयसुन्दर भारतीय साहित्य की महान् विभूति थे । भारतीय चिन्तन, साहित्य एवं साधना के क्षेत्र में उनकी भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है । वे न केवल महान् गुरु और समाज-सुधारक ही थे, अपितु विलक्षण प्रतिभा तथा सर्जन- क्षमता से सम्पन्न मनीषी भी थे। जहाँ एक ओर उन्होंने मरुगुर्जर के इतिहास को प्रभावित किया, भारत के विविध अञ्चलों में यात्रा कर जैनधर्म का प्रचार-प्रसार किया, अनेक राजाओं को प्रेरित कर उनके राज्यों को अहिंसामय बनाया; वहीं उन्होंने दर्शन, साहित्य, व्याकरण, काव्यशास्त्र आदि वाङ्मय के समस्त महत्त्वपूर्ण अंगों पर साहित्य का निर्माण कर, इस दिशा में एक नवीन पथ को प्रकाशित भी किया। वास्तव में, न केवल जैन - साहित्य अपितु सम्पूर्ण भारतीय साहित्य के मूर्धन्य रचयिताओं में महोपाध्याय समयसुन्दर का नाम गौरव के साथ प्रस्तुत किया जा सकता है। सचमुच, उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व दोनों बहुविध सम्पन्न थे । महोपाध्याय समयसुन्दर का जीवन, रचना -काल, रचनाएँ और उनके जीवन की प्रमुख घटनाएँ अधिकतर उपलब्ध हैं। उन्होंने पूर्वाचार्यों से बहुत-कुछ ग्रहण किया, तो परवर्ती विचारकों को चिन्तन के लिए बहुत-कुछ प्रदान भी किया । साहित्य-प्रेमियों ने उनके साहित्य को सम्हाल कर सुरक्षित रखा है, तथापि उनका कुछ साहित्य कालकवलित हो गया । उनके अनेक ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं और अवशिष्ट हस्तलिखित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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