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________________ समयसुन्दर का जीवन-वृत्त ३७ से स्पष्ट होता है कि उनका वि० सं० १६८१ का चातुर्मास जैसलमेर में हुआ था। इसी वर्ष वे लौद्रवा तीर्थ के दर्शनार्थ गए। लौद्रवपुर सहस्रफणा पार्श्वस्तवनम्'' में ऐसा निर्देश है कि वे कार्तिक शुक्ला १५ को लौद्रवा पहुँचे थे। वि० सं० १६८२, श्रावण वदि में रचित 'शत्रुञ्जय-रास'२ कृति से प्रतीत होता है कि वे लौद्रवा से ही संघपति थाहरु शाह द्वारा निकाले गये शत्रुञ्जय तीर्थ संघ में सम्मिलित हुए। वहाँ से उन्होंने नागौर की ओर पदयात्रा की और वहीं पर इस रास का निर्माण किया। वस्तुपाल-तेजपाल-रास'३ नामक रचना से विदित होता है कि इसी वर्ष वे तिवरी गये। 'षडावश्यक-बालावबोध' के अनुसार वि० सं० १६८३ में कवि पुन: जैसलमेर गए थे। इसी स्थान और इसी वर्ष में इनके रचे हुए 'बीकानेर चौवीसटा चिन्तामणि आदिनाथ-स्तवन ४ तथा 'श्रावक बारह व्रत कुलक५ -- ये अष्टक उपलब्ध हैं। ‘सन्तोष छत्तीसी'६ के आधार पर स्पष्ट होता है कि वि० सं० १६८४ का चातुर्मास कवि ने लूणकरणसर में किया था। यहाँ के जैन समाज में परस्पर संगठन का अभाव था। उनके मनोमैल को स्वच्छ करने के लिए कवि ने 'सन्तोष-छत्तीसी' नामधेयक रचना बनाकर प्रवचन के रूप में सुनायी, जिससे समाज में शान्ति और प्रेम स्थापित हो गया। यहीं इन्होंने 'दुरियर-स्तोत्र-वृत्ति' की रचना की। इसके अतिरिक्त इस वर्ष की साहित्यिक सेवाओं में कल्पसूत्र पर कल्पलता नामक टीका का प्रारम्भीकरण, दीक्षाप्रतिष्ठा-शुद्धि, विशेष-संग्रह, विशंवाद-शतक, बारह व्रतरास आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। वि० सं० १६८५ में वे रिणी पहुँचे। 'यति-आराधना' और कल्पसूत्र की कल्पलता-टीका यहीं पर पूरी की। महोपाध्याय समयसुन्दर अपनी पद-यात्राओं को तीर्थयात्रा एवं धर्मप्रचार आदि का माध्यम बनाकर सफल कर रहे थे। वि० सं० १६८७ में वे पदयात्राएँ करते हुए पाटण पहुँचे; 'जयतिहुअण-वृत्ति' और 'भक्तामर-स्तोत्र-सुबोधिका-वृत्ति इस बात की निर्णायक है। पाटण से उन्होंने अहमदाबाद की ओर विहार किया। ऐतिहासिक ग्रन्थों के आधार पर वि० सं० १६८७ में गुजरात-प्रान्त में भीषण दुष्काल पड़ा था। इसका आँखों देखा सच्चा १. वही, पृष्ठ १५३-१५४ २. वही, पृष्ठ ५७५-५८३ ३. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ ८३-८५ ४. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ ४६५-४६७ ५. वही, पृष्ठ ४६५-४६७ ६. वही, पृष्ठ ५४०-५४४ ७. जयतिहुअण-वृत्ति, प्रशस्ति (१) ८. भक्तामर-सुबोधिका-वृत्ति, प्रशस्ति, पृष्ठ ९७-९८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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