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________________ उपसंहार ४८९ भाषा में एकरूपता का अभाव है। एक ही शब्द के अनेक रूप पाये जाते हैं। 'ए' के स्थान पर 'अई' और 'ओ' के स्थान पर 'अउ' का प्रयोग अधिक है। 'ज्ञ' के स्थान पर 'न्य'; 'श', ष, 'स' के स्थान पर 'स' और 'ष' के लिए 'ख'; 'ऋ' के स्थान पर 'रि' का प्रयोग अधिकांशतः हुआ है। वैसे उनके मूलरूप भी उपलब्ध होते हैं। उर्दू, फारसी, अरबी, सिन्धी, पंजाबी शब्द भी प्रयुक्त हैं । तत्सम, तद्भव एवं देशज- तीनों प्रकार के शब्दों का प्रयोग हुआ है। कवि समयसुन्दर की पद्य-हिन्दी में संस्कृत-शब्दावली का बाहुल्य होने से वह आधुनिक हिन्दी से अति साम्यता रखती है। समयसुन्दर ने सिन्धी भाषा में भी कुछेक रचनाएँ लिखी हैं। उनकी सिन्धी, मुलतानी सिन्धी है, जो सिन्धी और पंजाबी का सम्मिश्रित रूप है। उनकी सिन्धी पठन में मनोहर है। वादी हर्षनन्दन के शब्दों में समयसुन्दर 'षड्भाषा-गीति-काव्यकर्ता' (उत्तराध्ययन-टीका, प्रशस्ति) थे। समयसुन्दर की भाषा-शैली भी बहुविध है। उनका साहित्य बहुआयामी होने से उनकी शैलियों का भी विविध होना स्वाभाविक है। वे परिस्थिति, पात्र, लक्ष्य, विषयवस्तु आदि के अनुकूल शैली अपनाते थे और उसमें यथावश्यक परिवर्तन कर लेते थे। उनके साहित्य में गद्य-शैली, पद्य-शैली और गद्य-पद्य मिश्रित शैली पायी जाती है। वर्ण्य-विषय आदि के आधार पर उनकी भाषा-शैली, संवाद-शैली, दृष्टान्त-शैली का अध्ययन करने पर उनके साहित्य में तार्किक-शैली, अनेकार्थी-शैली, संवाद-शैली, दृष्टान्त-शैली, व्याख्यात्मक-शैली, मिश्रित भाषा शैली, पादपूर्ति-शैली आदि विविध शैलियाँ प्राप्त होती हैं। 'जैसी विषय-वस्तु वैसी शैली' - यही उनकी शैलीगत विविधता का कारण है। उनकी सभी शैलियाँ लक्ष्य-पूरक एवं प्रभावोत्पादक हैं। महोपाध्याय समयसुन्दर की भाषा-शक्ति अद्वितीय है। पूर्ण एवं मार्मिक उपमानों के प्रयोग, चित्रात्मकता, स्वाभाविक अभिव्यक्ति तथा लाक्षणिकता ने उनकी भाषा में अपूर्व शक्ति भर दी है। उन्होंने जिस किसी भी भाषा में अभिव्यक्ति की है, उस भाषा पर उनका जबर्दस्त अधिकार था। आधुनिक भाषाओं के ऐतिहासिक अध्ययन की दृष्टि से, तत्कालीन भाषा के स्वरूप के निर्धारण की दृष्टि से उनकी हिन्दी-भाषा विशेष रूप से सहायक सिद्ध हो सकती है। चतुर्थ अध्याय का निष्कर्ष चतुर्थ अध्याय है, 'समयसुन्दर का वर्णन-कौशल'। कवि की कवित्व-शक्ति उसके वर्णन-कौशल से मुखरित हुआ करती है। समयसुन्दर की वर्णन-शक्ति अद्भुत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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