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________________ ४८० महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व हिंसा से जुड़ी हुई हैं, तो वह हिंसा होगी। हिंसा और अहिंसा का भेद वस्तुतः मन के भावों पर अवलम्बित है। एक तो हिंसा की जाती है, दूसरी हिंसा करनी पड़ती है और तीसरी हिंसा हो जाती है । यद्यपि ये तीनों हिंसा ही हैं, किन्तु तीनों में स्पष्ट अन्तर है । प्रत्येक क्रिया को यतनापूर्वक विवेकपूर्वक करना ही हिंसा से विरत होने का सरल उपाय है । २५. समय का मूल्य समयसुन्दर ने समय का महत्त्व बतलाया है । वे कहते हैं, हे मनुष्य ! तुम घड़ी के पास जाकर और चित्त लगाकर सुनो कि वह क्या कहती है ? समयसुन्दर के अनुसार घड़ी कहती है कि समय स्थिर नहीं है। गतिशील समय को रोका नहीं जा सकता। गया हुआ समय वापस लौटकर नहीं आता है। एक-एक पहर के अन्तर से घड़ी रात और दिन एक ही टंकार कर रही है कि यमराज के आगमन के बाजे बज रहे हैं, अत: सब सावधान हो जाओ।२ समयसुन्दर कहते हैं कि अरे मनुष्य ! मानव-जीवन की एक घड़ी लाख रुपयों से भी ज्यादा मूल्यवान होती है। तुम ऐसे बहुमूल्यवान समय को व्यर्थ ही मत खोओ। हे मनुष्य ! तूने अमूल्य-जीवन का आधा भाग हँसी-खेल में व्यतीत कर दिया। अब जब सामने बुढ़ापा तथा मृत्यु मुँह बाये खड़े हैं, क्यों पछताता है। ज्ञात नहीं, सौ वर्ष जीने की तुम्हारी कामना कब धूलि - धूसरित हो जाए । अत: तुम्हें इस अस्थिर संसार का विश्वास न कर जीवन की प्रत्येक घड़ी धर्माचरण एवं आत्मकल्याण में बितानी चाहिये । ३ निष्कर्ष यह है कि समयसुन्दर एक प्रौढ़ विचारक थे। उनकी प्रत्येक रचना चाहे वह कथा के रूप में हो या सैद्धान्तिक हो अथवा अन्य विषयक हो, उनकी वैचारिक प्रौढ़ता को प्रकट करती है। विचार - शतक, विशेष - शतक, समाचारी - शतक आदि ग्रन्थों में उन्होंने अनेक सूक्ष्म से सूक्ष्मतर दार्शनिक प्रश्नों को उपस्थित कर उनका सम्यक् समाधान भी दिया है। जैन आचार-दर्शन के विविध नियम, आवश्यक कृत्य, श्रावक एवं श्रमण-धर्म आदि ऐसे अनेक सामान्य विषय हैं, जिन पर उन्होंने अपने विचार प्रस्तुत किये हैं। अधिक विस्तार - भय से हमने तत्सम्बन्धी समग्र सामग्री को ग्रहण नहीं किया है । मात्र उनके कुछ विचारों को संक्षिप्त में प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया है। वस्तुतः समयसुन्दर के समस्त विचार-दर्शन का मूल आधार है. आत्मा और परमात्मा । इन्हीं दो तत्त्व रूप स्तम्भों पर उनके विचार-दर्शन का भव्य भवन खड़ा है। १. समाचारी - शतक (४२) २. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, घड़ीयाली गीत, पृष्ठ ४३८-३९ ३. वही, घड़ी लाखीणी गीतम्, पृष्ठ ४२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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