SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 483
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६८ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व समयसुन्दर के विचारानुसार एकाकी ज्ञान भी सार्थक नहीं है। समाचरित ज्ञान ही फलदायक हो सकता है। यदि क्रियासहित ज्ञान है, तो वह दुग्धभरित शंख के समान समयसुन्दर का विचार है कि ज्ञान न केवल मोक्ष-सुखदायक है, अपितु लौकिक सुख प्रदान करने में भी सहायक है। व्यवहारिक जगत् में ज्ञान का अपना महत्त्व है। वे अपने शिष्यों को अथवा शिष्यों के माध्यम से सभी साधुओं को सम्बोधित करते हुए कहते हैं, 'भणउ रे चेला भाई भणउ रे भणउ!' वे अध्ययन का फल बताते हैं कि ज्ञानी व्यक्ति को बहुत आदर-सम्मान प्राप्त होता है, विहार (पद-यात्रा) अच्छी तरह होता है, अच्छे वस्त्र पहनने को मिलते हैं, पाठक, वाचक आदि सम्माननीय उपाधियाँ प्राप्त होती हैं; जबकि अनपढ़-अज्ञानी व्यक्ति पाप करता हुआ और उत्पीड़ित देखा जाता है। वास्तव में अध्ययन इस लोक और परलोक - दोनों में लाभदायक एवं शोभाकारक है। समयसुन्दर ने ज्ञान के पाँच भेद बताए हैं - १. मति ज्ञान, २. श्रुत ज्ञान, ३. अवधि ज्ञान, ४. मनःपर्यव ज्ञान और ५. केवल ज्ञान । १५.१.१ मतिज्ञान __ इन्द्रियाभिमुख विषयों का ग्रहण मतिज्ञान है। समयसुन्दर ने इसके अट्ठाईस भेद बताए हैं। १५.१.२ श्रुतज्ञान धूम को देखकर वह्नि को जानने की तरह अर्थ से अर्थान्तर का ग्रहण करने वाला मन एवं इन्द्रियों की सहायता से होने वाला परोक्षज्ञान अथवा वाचक से वाच्यार्थ को ग्रहण करने वाला शब्दलिंगज ज्ञान श्रुतज्ञान है। समयसुन्दर ने श्रुत के चौदह भेद कहे हैं।' १५.१.३ अवधिज्ञान मर्यादित देश-काल की अपेक्षा अन्तरित कुछ द्रव्यों को तथा उनके कुछ सूक्ष्म भावों तक को एक सीमा तक प्रत्यक्ष करने वाला ज्ञान-विशेष अवधिज्ञान है। समयसुन्दर के अनुसार इसके भेद असंख्य हैं।६ १. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, ज्ञानपंचमीवृहत्स्तवनम्, पृष्ठ २३६ २. वही, पठनप्रेरणा गीतम्, पृष्ठ ४३६-४३७ ३. वही, ज्ञानपंचमी लघुस्तवनम्, पृष्ठ २४० ४. वही, ज्ञानपंचमी लघुस्तवनम्, पृष्ठ २४० ५. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, ज्ञानपंचमी लघुस्तवनम्, पृष्ठ २४० ६. वही, ज्ञानपंचमी वृहत्स्तवनम्, पृष्ठ २३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy