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________________ ४६६ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व एक मन सुद्धि बिन कोउ मुगति न जाइ। भावइ तूं केस जटा धरि मस्तकि, भावइ तूं मुंड मुंडाइ। भावइ तूं भूख तृषा सहि वन रहि, भावइ तूं तीरथ न्हाइ। भावइ तूं साधु भेख धरि बहुपरि, भावइ तूं भसम लगाइ। भावइ तूं पढ़ि गुणि वेद पुराणा, भावइ तूं भगत कहाइ। उक्त बात को ही कवि ने निम्न प्रकार से भी अभिव्यक्त किया है - कोलो करावउ मुंड मुंडावउ, जटा धरउ को नगन रहउ। को तप्प तपउ पंचागनि साधउ, कासी करवत कष्ट सहउ॥ को भिक्षा मांगउ भस्म लगावउ मौन रहउ भावइ कृष्ण कहउ। समयसुन्दर कहइ मन शुद्धि पाखइ, मुगति सुख किम ही न लहउ॥२ समयसुन्दर का कहना है कि मन को सदैव निर्मल रखने का प्रयास करना चाहिये। मन के विशोधन की प्रक्रिया बताते हुए समयसुन्दर कहते हैं कि जिनशासन रूपी एक सरोवर है, सम्यक्त्व उसकी पाल है, दान-शील-तप-भाव चार दरवाजे हैं। उस सरोवर में नव तत्त्वों का विशाल कमल प्रस्फुटित है। उसमें मुनि रूपी हंस तैर रहे हैं, जो तप, जप, शम, दम आदि का नीर पीते हैं और आत्मा को प्रक्षालित करते हैं। ऐसे सरोवर में हे धोबी ! तुम अपने मन रूप मैली धोती को स्वच्छ करो। तप के ताप में उसे तपाना, आलोचना की साबुन से धोना। जब अठारह पापों के दाग उड़ जाएँ, तब तत्काल तुम्हारी मन रूपी धोती उज्ज्वल हो जाएगी। समयसुन्दर कहते हैं कि इस मन रूपी धोती को एक बार धो लेने के बाद भी सदैव पवित्र और शुद्ध रखना, क्योंकि यह मन रूपी धोती बड़ी विलक्षण है।३ १५.त्रिविध साधना-मार्ग समयसुन्दर के अनुसार प्रत्येक साधक का गन्तव्य स्थल मुक्ति है। साधक को मुक्ति प्राप्त करने के लिए मुक्ति-मार्ग से यात्रा करनी होगी। मुक्ति-मार्ग की व्याख्या करते हुए समयसुन्दर कहते हैं, 'मुक्तौ मुक्तिपत्तने मार्ग इव मुक्तिमार्गः' अर्थात् मोक्ष रूपी नगर का जो पथ है, वही मुक्ति मार्ग है। समयसुन्दर मुक्ति की प्राप्ति के लिए त्रिविध साधना मार्ग प्रस्तुत करते हैं। १. वही, मनःशुद्धि गीतम्, पृष्ठ ४३४ २. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, प्रस्ताव सवैया छत्तीसी, पृष्ठ ५१८ ३. वही, मनधोबी गीतम्, पृष्ठ ४३० ४. सप्तस्मरणवृत्ति, द्वितीयस्मरण, पृष्ठ १९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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