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________________ समयसुन्दर का जीवन-वृत्त ३३ एवं अहिंसाप्रचार करते हुए वे सांगानेर पहुँचे। 'दान - शील- तप - भावना - संवाद” नामक रचना इस तथ्य को प्रकट करती है । वि० सं० १६६२ में ही कवि ने घंघाणी तीर्थ की ओर पाद-प्रयाण किया । ' श्रीघंघाणी तीर्थ स्तवन २ के निर्देशानुसार ज्येष्ठ शुक्ला एकादशी को दूधेला सरोवर के निकटस्थ खोखर के पृष्ठ भाग की खुदाई करते समय एक भूमिगृह निकला, जिसमें जैन और शिव की पैंसठ भव्य प्रतिमाएं प्राप्त हुईं, जिसका दर्शन उन्होंने माघमास में किया। यहाँ उन्हें अन्य अनेक प्राचीन कलाकृतियाँ और पुरातत्त्व सम्बन्धी सामग्रियाँ देखने को मिली थीं। वि० सं० १६६३, कार्त्तिक शुक्ला दशमी को बीकानेर में 'रूपकमाला' नामक भाषा-काव्य पर आपने चूर्णि बनाई। इससे यह निश्चित हो जाता है कि कवि वि० सं० १६६३ में बीकानेर गये थे और वहीं पर चातुर्मास बिताया था। भंडारकर रिसर्च इंस्टीट्यूट, पूना में उपर्युक्त चूर्णि की कवि-लिखित प्रति प्राप्त होती है। यह प्रति वि० सं० १६६४, चैत्र पूर्णिमा को 'चाटसू' नगर में पूर्ण लिखी गई। चार प्रत्येकबुद्ध - चौपाई में प्राप्त संकेतों के आधार पर कवि ने चाटसू से आगरा की ओर उग्र विहार किया। यह चातुर्मास आगरा में ही हुआ था । इस तथ्य की पुष्टि एक और गीत करता है, वह है आगरा मंडन श्री विमलनाथ भास । तत्पश्चात् वि० सं० १६६५, चैत्र शुक्ला दशमी को अमरसर ( शेखावटी ) में रचित 'चातुर्मासिक व्याख्यान पद्धति ५ नामक कृति प्राप्त होती है । अमरसर में ही निर्मित्त ' अमरसर मंडन शीतल-जिनस्तवनम् ६ नामक रचना से भी यह बात स्पष्ट होती है कि कवि पद-यात्रा करते हुए अमरसर आए और वहाँ से वि सं० १६६६ में वीरमपुर पहुँचे, जहाँ उन्होंने 'कालकाचार्य - कथा ७ की रचना की थी।' ज्ञान- पंचमी बृहत्स्तवनम् " नामक रचना भी इसी स्थान पर ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी को लिखी गई । I महोपाध्याय समयसुन्दर का सिन्धी भाषा पर अच्छा अधिकार था और उन्होंने सिन्धी में अनेक रचनाओं का प्रणयन भी किया था । उन रचनाओं से ज्ञात होता है कि कवि ने देश के अन्य प्रदेशों का पर्यटन करने के साथ-साथ सिन्ध प्रान्त में भी पदयात्राएँ की थीं। उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर सिन्ध प्रान्त में इनका विचरण दो-तीन वर्ष माना जा सकता है। ९. वही, पृष्ठ ५८३ - ५९३ - २. द्रष्टव्य - • समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ २३२-२३५ ३. आनंदकाव्यमहोदधि, मौक्तिक ७, चार प्रत्येकबुद्ध - चौपाई (४-९-३), पृष्ठ १४७ ४. द्रष्टव्य – समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ १०२-१०३ ५. द्रष्टव्य – चातुर्मासिक व्याख्यान पद्धति, प्रशस्ति (अप्रकाशित ) ६. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ ९७ - १०० ७. द्रष्टव्य कालिकाचार्य - कथासंग्रह, कालकाचार्य - कथा, ८. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ २३६ - २३९ Jain Education International प्रशस्ति — For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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