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________________ ४६० ___ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व सूचित किया है कि यद्यपि दान से पुण्य-कर्म का बन्ध होता है और यह शुभ भावों में प्रवृत्ति के लिए एवं सांसारिक आसक्तियों से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है, किन्तु अन्ततः यह कर्मबन्ध ही है और कर्मबन्ध चाहे शुभ भी क्यों न हो, पुनः संसार-प्राप्ति कराता है। समयसुन्दर ने दान पाँच प्रकार का कहा है - १. अभयदान, २. सुपात्रदान, ३. अनुकम्पादान, ४. उचितदान और ५. कीर्तिदान। समयसुन्दर ने दान के सम्बन्ध में एक प्रश्न भी उपस्थित किया है कि श्रावक यदि साधु के अलावा अन्य दर्शनियों को भोजनादि दान देता है, तो उसके सम्यक्त्व में दोष आता है या नहीं? यदि वह दान देता है, तो असाधु भी साधु के समान हो जायेगा और यदि वह दान नहीं देता है, तो यह लोकविरुद्ध है एवं निर्दयता का सूचक है। समयसुन्दर इस समस्या का समाधान करते हुए कहते हैं कि मोक्षफल के रूप में दान देते समय पात्र-अपात्र का विचार किया जाता है, किन्तु अनुकम्पा से अन्य दर्शनियों को भी भोजनादिदान देना चाहिये। उन्होंने लिखा है कि साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका - ये दान देने के लिए सुपात्र हैं। १०.२ शीलधर्म ___जैन मनीषियों ने शील को बड़ा महत्त्वपूर्ण स्थान दिया है । समयसुन्दर शील का आदर्श रूप में पालन करने वालों के प्रति नतमस्तक थे। शील के सम्बन्ध में उनका विचार है कि यही संसार में सबसे बड़ी चीज है। शील रूपी आभूषण का धारक परम सुन्दर लगता है और वह शिव-सुख-संपदा को प्राप्त करता है। समयसुन्दर का कथन है कि यदि कोई स्वर्ण का जिनमन्दिर निर्मित करवाता है और करोड़ों का दान देता है तो भी वह शील का पालन करने वाले से बड़ा नहीं है। शील का इतना माहात्म्य है, कि इससे सभी संकट दूर हो जाते हैं, यह सौभाग्य और यशकारक है, इससे देवों का सानिध्य प्राप्त होता है। शील के प्रताप से सर्प डसता नहीं है, अग्नि शीतल हो जाती है, अरि-करि और केशरी का भय समाप्त हो जाता है। वस्तुतः इससे बड़ा वैराग्य कुछ नहीं है। भव-भ्रमण से मुक्ति दिलाने में यह पूर्णत: समर्थ है। ___समयसुन्दर के विचारानुसार शील सुरतरु है, जो जिनेश्वर द्वारा रोपित है। इसकी सुरक्षा करना प्रत्येक शीलवान के लिए आवश्यक है। उन्होंने ब्रह्मचारी को अपने ब्रह्मचर्य १. वही, दान-शील-तप-भाव-संवाद (ढाल २ से पूर्व, दोहा १-२) २. चातुर्मासिक व्याख्यान (पत्र १) ३. विशेष शतक (२२) ४. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, प्रस्ताव सवैया छत्तीसी (१९) ५. समयसुन्दर कृति कुसुभांजलि, शील गीतम् (१) ६. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, दान-शील-तप-भाव-संवाद (ढाल २ से पूर्व दूहा ४-६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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