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________________ ४३० १.१३ कषाय १.१४ काम - भोग (क) (ख) (ग) (घ) १.१५ कुकर्म १.१६ कुशिष्य विष हलाहल कहियइ विरुयउ, ते मारइ इक वार जी । पण कषाय अनंती वेला, आपइ मरण अपार जी ॥ १ १.१७ केवलज्ञान महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व तन-धन यौवन कारमुं रे, क्षण मा खेरु थाय । काम-भोग फल पाडुया रे, दुर्गति ना दुख दाय ॥२ काम - भोग संयोग सगला, जाण फल किंपाक रे । दीसतां रमणीक दीसइ, अति कटुक विपाक रे ॥ ३ मोक्ष भणी जातां थकां जी, विषय करइ अंतराय । संयम प्रवहण भंजिवा जी, विषय कह्या महावाय रे ॥ विषय सेवइ कुण एहवा जी, कामनी कुण वेसास 1 खिण राचइ विरचइ खिणइ, खिण नाखइ नीसास रे । राग-द्वेष रूड़ा नहीं रे, कडुआ वलि करम विपाको रे । विषय - सुख विष सरिखा वली, विरुआ जेहआ आको रे || कुकर्म कर्तुं न युक्तम् । गीतार्थ नाम धृत्वा च, बृहत्क्षेत्रे यशोर्जितम | यदि ते न गुरोर्भक्ताः शिष्यैः किं तैर्निरर्थकैः ॥ चंद सूरज ग्रह नक्षत्र तारा, तेसूं तेज आकास रे । केवलज्ञान समो नहीं कोई, लोकालोक प्रकास रे ॥ १. वही, क्षमा छत्तीसी (३१) २ . वही, श्री जम्बूस्वामी गीतम् (७) ३. वही, आत्मप्रमोद गीतम् (४) ४. थावच्चासुत ऋषि - चौपाई (१.७.७८) ५. चम्पक श्रेष्ठी - चौपाई (२.८.९ ) ६. कालिकाचार्य कथा, पृष्ठ २०२ Jain Education International ७. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, गुरुदुःखित वचनम् (८) ८. वही, ज्ञान पंचमी लघु स्तवनम् (४) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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