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१.१३ कषाय
१.१४ काम - भोग
(क)
(ख)
(ग)
(घ)
१.१५ कुकर्म
१.१६ कुशिष्य
विष हलाहल कहियइ विरुयउ, ते मारइ इक वार जी । पण कषाय अनंती वेला, आपइ मरण अपार जी ॥ १
१.१७ केवलज्ञान
महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व
तन-धन यौवन कारमुं रे, क्षण मा खेरु थाय । काम-भोग फल पाडुया रे, दुर्गति ना दुख दाय ॥२ काम - भोग संयोग सगला, जाण फल किंपाक रे । दीसतां रमणीक दीसइ, अति कटुक विपाक रे ॥ ३ मोक्ष भणी जातां थकां जी, विषय करइ अंतराय । संयम प्रवहण भंजिवा जी, विषय कह्या महावाय रे ॥ विषय सेवइ कुण एहवा जी, कामनी कुण वेसास 1 खिण राचइ विरचइ खिणइ, खिण नाखइ नीसास रे । राग-द्वेष रूड़ा नहीं रे, कडुआ वलि करम विपाको रे । विषय - सुख विष सरिखा वली, विरुआ जेहआ आको रे ||
कुकर्म कर्तुं न युक्तम् ।
गीतार्थ नाम धृत्वा च, बृहत्क्षेत्रे यशोर्जितम | यदि ते न गुरोर्भक्ताः शिष्यैः किं तैर्निरर्थकैः ॥
चंद सूरज ग्रह नक्षत्र तारा, तेसूं तेज आकास रे । केवलज्ञान समो नहीं कोई, लोकालोक प्रकास रे ॥
१. वही, क्षमा छत्तीसी (३१)
२ . वही, श्री जम्बूस्वामी गीतम् (७) ३. वही, आत्मप्रमोद गीतम् (४) ४. थावच्चासुत ऋषि - चौपाई (१.७.७८) ५. चम्पक श्रेष्ठी - चौपाई (२.८.९ )
६. कालिकाचार्य कथा, पृष्ठ २०२
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७. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, गुरुदुःखित वचनम् (८) ८. वही, ज्ञान पंचमी लघु स्तवनम् (४)
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