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________________ समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व ४२७ सूक्तियाँ काव्य का महत्त्वपूर्ण अंग हैं। कभी-कभी तो अर्थ - गौरव - पूरित एक सूक्ति सम्पूर्ण काव्य को मूल्यवान् बना देती है और कभी-कभी वह स्वयं सैकड़ों ग्रन्थों की अपेक्षाकृत अधिक मूल्यवान् हो जाती है। सूक्तियों की महत्ता के सम्बन्ध में डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी लिखते हैं कि सूक्तियों में नीति के वचन थोड़े शब्दों में गागर में सागर की भांति बड़ी सुन्दरता से व्यक्त होते हैं। इनमें उपदेश देने की छटा निराली होती है। ये भावों को सजा-संवार कर सजीव बनाने एवं वक्तव्य-कला को चमकाने में बड़ी सहायक होती हैं । हमारे विवेच्य कवि समयसुन्दर भी सूक्तियों एवं सुभाषितों के महत्त्व से सुपरिचित थे तथा अपनी रचनाओं में यदा-कदा सूक्त वचनों का प्रयोग किया करते थे । 'कालिकाचार्यकथा' आदि ग्रन्थों में उन्होंने कतिपय प्रसिद्ध सूक्तियों को स्थान दिया है। ऐसी सूक्तियाँ कवि ने अपनी बात को पुष्ट करते हुए प्रयुक्त की हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने स्वयं 'गाथासहस्री' नामक ग्रन्थ में लगभग १००० प्रसिद्ध सुभाषित वचनों का संकलन किया है । इस ग्रन्थ में वे सूक्तियों के महत्त्व के सम्बन्ध में लिखते हैं ―― व्याख्याकाले विचाले प्रवरमसरं प्राच्य वाच्यं प्रसक्तं । सभ्येभ्यानां पुरस्ताच्चतुरचमत्कारकारं च भावि ॥ २ अर्थात् प्रवचन करते समय समयानुसार सुभाषित पद्य बोलने से सज्जनों के चित्त को आप (प्रवक्ता) अवश्य चमत्कृत करने वाले होंगे । कवि की मान्यता है कि जैसे भूख की पीड़ा से आकुल व्यक्ति भोजनखीर का और तृषा से आतुर चातक जल का कथमपि परित्याग नहीं करता, वैसे ही रसिक विद्वज्जन सुभाषित-सूक्तियों का परित्याग नहीं करता है । भला, रसप्रद वस्तु का कभी त्याग किया जा सकता है भूखो भोजन खीर, विण जिम्यां, छोड़इ नहीं, इम जाणइ सही रे। तरस्यो चातक नीर, सुपण्डित सुभाषित रसियो किम तजइ रे ॥३ कवि ने न केवल सूक्तियों का प्रयोग किया है, अपितु स्वयं ने भी स्थान-स्थान पर सूक्त/सुभाषित वचन कहे हैं । ये सूक्तियाँ अधिकांशत: उपदेशमूलक हैं। इनके प्रयोग से कवि की काव्य-कृतियाँ सौष्ठव एवं गाम्भीर्य गुण से युक्त हुई हैं। साथ ही साथ इनसे उनकी शैली भी आकर्षक बनी है। इन सूक्तियों द्वारा समयसुन्दर के नीति, धर्म और दर्शन आदि से सम्बद्ध बहुआयामी ज्ञान का बोध होता है । अगले पृष्ठों पर द्रष्टव्य हैं, कवि समयसुन्दर की आचार-विचार विषयक कतिपय मार्मिक सूक्तियाँ - १. उद्धृत – वृहत् सूक्ति कोश, पृष्ठ १ २. गाथा सहस्री, प्रशस्ति ( ३ ) ३. सीताराम - चौपाई (८.१.१-२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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