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________________ समयसुन्दर का जीवन-वृत्त २९ 'उत्तराध्ययनसूत्रवृत्ति' के आरम्भ में ही उन्हें 'महोपाध्याय १ के विशेषण से सम्बोधित किया है। उपर्युक्त पदों की प्राप्ति से स्पष्ट हो जाता है कि कवि अपने समय के एक विश्रुत विद्वान् थे, संघ पर उनकी प्रतिभा की अनुपम छाप थी और वे जन-जन के श्रद्धा के अभिनव पात्र थे। १३. पद-यात्राएँ यात्रा शिक्षा का एक साधन है । भिन्न-भिन्न स्थानों को देखने तथा सभी प्रकार के व्यक्तियों से बातें करने से हम बहुतेरी नयी चीजें सीखते हैं। यूरोप में तो यात्रा के बिना शिक्षा अधूरी समझी जाती है । प्राचीन भारत में भी तीर्थयात्रा को बड़ा महत्त्व दिया जाता था। अनेक नदियों और पहाड़ों के इस देश में पद-यात्राएँ करना तो बड़ा आनन्दप्रद होता है । आज विज्ञान के युग में जब आवागमन के द्रुतगामी साधन उपलब्ध हैं और मनुष्य शब्द की गति से यात्रा करने की तैयारी कर रहा है, तब पद-यात्राओं के महत्त्व का प्रतिपादन करना भी एक प्रश्न-चिह्न ही बन जाता है। आज जब यह कहा जाता है कि जैन मुनि इस युग में भी वाहन का उपयोग नहीं करता । नहीं करना चाहिए, तो अनेकों को आश्चर्यजनक लगता है, किन्तु पद-यात्राओं का अपना एक विशिष्ट महत्त्व और स्थान है, जिसे नकारा नहीं जा सकता है। किसी देश और संस्कृति की मूलात्मा का दर्शन उस सुदूर ग्रामीण अंचलों में ही होगा, जो आज भी आवागमन के द्रुतगामी साधनों से वंचित हैं। पद-यात्री जिस निकटता से उन लोगों के जीवन, भावनाओं और सांस्कृतिक मूल्यों का अवलोकन एवं आकलन कर पाता है, वह द्रुतगामी वाहन - यात्रियों के लिए संभव नहीं है । पद-यात्राओं में व्यक्ति अधिकाधिक व्यक्तियों से सम्पर्क में आता है। उसका ज्ञान एवं दृष्टिकोण, व्यापक और उदार बनता है । पद-यात्राओं में उसे अपने व्यक्तित्व के विकास का अवसर मिलता है । यथार्थतः पद-यात्रा आचार-विचार की गंगा-यमुना को ग्राम-ग्राम में ले जाने वाली एक अनुपम सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक परम्परा है और देश - दर्शन, स्वाध्याय, स्वानुभूति, सत्संग एवं ज्ञानार्जन का उत्कृष्ट साधन है । वाहन - यात्रा में प्रकृति का वह सौन्दर्य-बोध भी कथमपि सम्भव नहीं है, जो किसी पदयात्री को हो सकता है। कहाँ भीड़ों से संकुल वाहनों की यात्रा और कहाँ शान्त तथा नीरव पद- -यात्राएँ। दोनों में कोई तुलना नहीं। पद यात्री पदयात्रा में जिस आध्यात्मिक शान्ति और आत्मतोष का अनुभव करता है, वह वाहन यात्री को कभी भी प्राप्त नहीं हो सकता । १. श्री समयसुन्दर - महोपाध्यायचरणसरोरुहाभ्यां नमः । Jain Education International - उत्तराध्ययनसूत्रवृत्ति (प्रारम्भ में) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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