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________________ ३९६ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व आलोच्य साहित्य से निम्नलिखित पद्य अवलोक्य है - 555। ।। 5 ।।5। = १६ मात्रा जम्बूद्वीप लख जोयण मान, भरतखेत्र तिहां अति परधान। साढ़ा पचवीस आरिज देस, अवर देस तिहां नहि ध्रम लेस ॥१ ४.२६ चौपाई इसमें १६ मात्राएँ होती हैं। इसके अन्त में जगण और तगण का निषेध है। उदाहरण के लिए - ।। ऽ ऽ ऽ ।। 5 5 5 = १६ मात्रा अति ऊँचा जादव आवासा, दण्ड कलश धज पुण्य प्रकाशा। मणि अंगणि प्रतिबिम्या तारा, ग्रहण करइ मुगता फलदारा ॥२ ४.२७ लीलावृत्त इस वृत्त में १८ मात्राएँ होती हैं। पादान्त में ऽ। का निषेध है। यथा - 55 ।।।। ऽ । ।ऽऽ ऽ-१८ मात्रा वीसे जिनवर ज्ञान दिणंदा जी। चौमुख सोहै पूनमचंदा जी। भवि भवि देज्यो तुम पाय सेवा जी । मिलन उमाह्यौ गज जिम रेवा जी॥३ ४.२८ सवैया २२ से २६ वर्णों तक के एक गणात्मक वृत्त को सवैया कहते हैं । २६ वर्णों का एक सवैया नीचे प्रस्तुत है - के कहइं कृष्ण के कहइ ईसर, के कहइ ब्रह्मा किया जिण वेद। के कहइ अल्ला , सहज कहइ के, परमेसर जू दे बहु भेद। जगति सृष्टि करता उपगारी, संहरता पणि नाणइ खेद। समयसुन्दर कहइ हूँ तो मार्नु, करम एक करता ध्रु वेद॥ ४.२९ सार इस छन्द में १६-१२ पर विश्राम के साथ २८ मात्राएँ होती हैं। अन्त में । ऽ या ।। रहते हैं। जैसे = २८ मात्रा ।।5 । ।।।। ।।। ।।।।। ।।।5।।5 15 १६ १२ १. मृगावती-चरित्र-चौपाई (१.१.१) २. सांब-प्रद्युम्न-चौपाई (१.१.१९) ३. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, वीस विहरमान जिनस्तवन (३-४) ४. वही, प्रस्ताव-सवैया छत्तीसी (२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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