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________________ ३९२ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व स. स. स. स. 115 115 115 115 प्रणमामि जिनं कमला सदनं, सदनंतगुणं कुलहारसमम्। रस मंदमंदभसुधानयनं, नयनंदितवैश्वजनं शमिनम्॥ ४.१२ द्रुतविलम्बित जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः १ नगण, २. भगण और १ रगण होता है, उसे 'द्रुतविलम्बित' नामक वर्ण-वृत्त कहते हैं । निम्नांकित उदाहरण द्रष्टव्य है - न. भ. भ. र. ।।। ।। ।। ऽ । ऽ सतत-सज्जन-नन्दित-नव्यभं, नयधनं वरलब्धिधरं समम्। रदननक्रमनश्चलन-प्रियं, नलिन-नव्यय-नष्ट-वनं कलम्॥२ ४.१३ स्त्रग्विणि यह वर्ण-वृत्त है। इसके प्रत्येक चरण में चार रगण होते हैं। विवेच्य साहित्य से स्रग्विणी का उदाहरण - SIS SIS SIS SIS त्वां नुवे यस्य तं शंकरे मे मते, देवपादांबुजेशं करे मे मते। मन्मनश्चंचरीकोपसंतापते, नाभिभूपांगभूः कोपसंतापते॥ ४.१४ वंशस्थ यह बारह वर्णों का वार्णिक छन्द है। इसका व्यवहार संस्कृत काव्यों में अधिक मिलता है। इसमें जगण, तगण और रगण आते हैं। इसे 'वंशस्थविलम्' भी कहते हैं। इसका उदाहरण - ज. त. ज. र. 151 551 151 SIS विनौति यो नो सकलानिकेतनं, कुले जिनं हंसकलानिकेतनम्। सुखानि लेभे समहंस किन्नर-प्रणम्य पादं समहंसकिन्नर ॥ ४.१५ वसन्ततिलका जिस वर्ण-वृत्त में तगण, भगण, जगण, पुनः जगण, और अन्त में दो गुरु होते १. वही, श्री पार्श्वनाथस्य श्रृंखलामयलघुस्तवनम् (१) २. वही, श्रीपार्श्वनाथश्रृंगाटकबन्धस्तवनम् (३) ३. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, नानाविधश्लेषमयं श्रीआदिनाथस्तोत्रम् (१३) ४. वही, नानाविधश्लेषमयं श्रीआदिनाथस्तोत्रम् (१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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