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________________ समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व ३८७ गुण का विशेष रूप से विकास पाया जाता है। उनके वर्ण्य विषयानुरूप होने के कारण उनके काव्यों में इसका आधिक्य है। इसीलिए पाठक या श्रोता को उनकी रचनाओं का आशय समझने में कुछ भी कठिनता नहीं होती तथा उसके हृदय में उद्दिष्ट भावों का संचार का परिपाक अनायास हो जाता है। वस्तुतः प्रसाद गुण की अधिकता के कारण ही समयसुन्दर की काव्य-रचना सरल, सहज और स्वच्छ बनी है। यथा - चंद सूरज ग्रह नक्षत्र तारा, तेसूं तेज आकाश रे। केवलज्ञान समउ नहीं कोई, लोकालोक प्रकाश रे॥ -ज्ञानपंचमी लघु स्तवनम् (४) बाल वृद्ध नइ रोगियउ, साध बांभण नइ गाइ। अबला एह न मारिवा, माऱ्या महापाप थाइ । - सीताराम-चौपाई (३.७.१३) यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि विवेच्य साहित्य में प्रसाद गुण कहीं भी एकाकी रूप में समाविष्ट नहीं हुआ है। वह माधुर्य या ओज संयुक्त ही है। इस प्रकार हम देखते हैं कि समयसुन्दर के साहित्य में माधुर्य, ओज और प्रसाद -- तीनो गुणों का विषयानुरूप समुचित सामवेश हुआ है। माधुर्य-व्यंजक कोमल वर्णों के प्रयोग से तथा दीर्घ समासों के अभाव में उनकी समस्त रचनाएँ हृदय-स्पर्शी बन गई हैं। कवि ने नाद-सौन्दर्य की ओर भी ध्यान दिया है। प्रसाद-गुण तो उनकी निजी विशेषता है। सचमुच, इन तीनों गुणों के समावेश से उनकी रचनाएँ ललित, आवर्जक एवं प्रभावोत्पादक हुई हैं। ४. छन्द-योजना ___काव्य के कला-पक्ष में जहाँ अलंकार-विधान द्वारा शब्दों की रमणीयता प्रदान की जाती है एवं उसके अर्थ-गौरव की अभिवृद्धि की जाती है, वहीं छन्द-योजना द्वारा रचना को नाद तथा गेयता में आबद्ध करके उसे अधिक भावग्राही और संवेदना-परक बनाया जाता है। 'निरंकुशा: कवयः' के अनुसार आज के कवि छन्द के राजमार्ग को तिलाञ्जलि देकर अपनी नई-नवीन पगडंडियाँ बना रहे हैं, परन्तु काव्यार्थ के उत्कर्ष में छन्द-योजना का विशेष महत्त्व है। कवि के भावों के अनुकूल छन्द मिलने पर उसकी कल्पना अत्यन्त मनोहर रूप अंगीकार कर लेती हैं। इसीलिए विविध रसों की अभिव्यञ्जना के लिए विभिन्न छन्द उपयुक्त सिद्ध होते हैं। क्षेमेन्द्र का कथन है कि काव्ये रसानुसारेण वर्णनानुगुणेन च । कुर्वीत सर्ववृत्तानां विनियोग विभागवित्॥ अर्थात् काव्य में रस तथा वर्णनीय वस्तु के अनुसार छन्दों का सोच-समझकर विनियोग करना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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