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________________ प्रकाशकीय श्री जैन श्वे. खरतरगच्छ संघ, जोधपुर एवं श्री जितयशा फाउंडेशन के लिए यह सौभाग्य की बात है कि हमें 'महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व' शोध-प्रबंध को पुन: प्रकाशित करने का अवसर मिला है। ___ यह शोध-प्रबंध प्रसिद्ध साहित्यकार एवं महान चिंतक पूज्य श्री चन्द्रप्रभ जी द्वारा लगभग 25 वर्ष पूर्व जैन दर्शन के अप्रतिम विद्वान डॉ. सागरमल जी जैन के निदेशन में लिखा गया था। इसी ग्रंथ पर उन्हें हिन्दी साहित्य सम्मेलन, इलाहबाद द्वारा महोपाध्याय की उपाधि प्रदान की गई थी। धर्मसंघ के सर्वश्रद्धेय कवि, विद्वान एवं साहित्यकार उपाध्याय श्री समयसुन्दर जी महाराज स्वयं अपने समय में भी एक महान दार्शनिक एवं साहित्यमनीषी के रूप में पूजे गये और आज भी उनके गीत हर परंपरा में गाये-गुनगुनाये जाते हैं। उनके हज़ारों गीत और सैंकड़ों ग्रंथ हमारे बीच मौजूद हैं। उनके अनेक ग्रंथ प्रकाशित भी हो चुके हैं। उनकी विद्वत्ता की धाक इतनी ज़बरदस्त थी कि वे सम्राट अकबर के भी चहेते संत हो गये थे। उनके द्वारा 'राजा नो ददते सौख्यम्' जैसे एक साधारण वाक्य के दस लाख से अधिक अर्थ निकाले गये थे। इस एक बात से ही यह सिद्ध हो जाता है कि समयसुन्दर जी केवल एक संत नहीं थे वरन् माँ सरस्वती के कृपापात्र पुत्र भी थे। उनके सार्वभौम और सार्वकालिक व्यक्तित्व एवं कृतित्व से हर आम एवं प्रबुद्ध व्यक्ति भली-भांति परिचत हो सके, इसी उद्देश्य से हमने प्रस्तुत ग्रंथ को प्रकाशित करने का संकल्प लिया। हमें प्रसन्नता है कि हम अपने संकल्प को पूरा कर पाने में सफल हुए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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