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________________ समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व ३७५ उपमा-प्रयोग एवं उसके बहुविध लालित्य को देखकर यदि हम 'उपमा कालिदासस्य' की तरह 'उपमा समयसुन्दरस्य' कहें, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। यद्यपि यह सत्य है कि उनके साहित्य में कवि कालिदास की कोटि का उपमा-उत्कर्ष नहीं है, लेकिन फिर भी समयसुन्दर द्वारा प्रयुक्त उपमाएँ अपना वैशिष्ट्य रखती हैं। कवि समयसुन्दर उपमानों के चयन में काफी सजग रहे हैं। उन्होंने न केवल शास्त्रीय और रूढ़िगत उपमानों को चुना अपितु लोकजीवन एवं लोकमानस से भी उपमानों को ग्रहण किया है। निम्नांकित उदाहरणों से यह स्पष्ट हो जाएगा - चाल्यो लंका दिसि रामचंद साथह विद्याधर तणा बंद। नक्षत्र बीट्यो चंद जेम, आकाश सोहइ राम तेम ॥ - सीताराम-चौपाई (६.३.१२) यहाँ लंका की यात्रा करते समय विद्याधरों के बीच शोभायमान् रामचन्द्र की उपमा आकाश में नक्षत्रों के मध्य चन्द्रमा के साथ दी गयी है। अत: यहाँ उपमा अलंकार है। और भी हीयडइ श्रेणिक हरखीयउ, मेघ आगम जिम मोर। वसंत आगम जिन वनस्पती, चाहइ चंद चकोर ॥ __ - वल्कलचीरी-चौपाई (१.दूहा २) इम संसार ना सुख भोगवतां ऊपनउ गरभ उद्योती रे। जिम पूरव दिस चंद विराजइ, सीप सोहइ जिम मोती रे॥ प्रगट्यउ पांडुर भाव कपोले रे, गरभ नी वृद्धि जणावइ रे। जागे गरभसूत्र नी टीका, गुपत अरथ समझावइ रे॥ - मृगावती-रास (१.३.७-८) पश्यन्त्या बदनं प्राची, पद्मिन्यां दर्पिणेऽरुणः। प्रवालाधररागेण, रविबिम्बमिव प्रगे ॥ -उद्गच्छत्सूर्यबिम्बाष्टकम् (४) पंच घाइ पाली जती रे, चंद कला जिम बाधइ रे। गिरि कंदरि चंपक लता रे, बहुपरि बधइ अबाधइ रे ।। -द्रौपदी-चौपाई (२.१.५) ते संख धउलउ एहवउ रे, जेहवी गो क्षीर धार। अथवा धउलउ चन्द्रमा रे, अथवा माती हार॥ -द्रौपदी-चौपाई (३.२.१९) राजहंस जिम चाले मलपती, केसरि सम कटि लंक रे। -चार प्रत्येक-बुद्ध चौपाई (३.२.८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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