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महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व पोकार करतां हीयो फाटइं, हार त्रोड़इ आपणा।
आभरण देह थकी उतारइ, झरइं आंसू अति घणा। रावण के महलों में विरहिनी सीता वर्णन करुण-सागर में डूबा देने बाला है -
दीठी सीत दयामणी, दुरबल क्षीण सरीर ॥ जेहवी कमल नी हिमबली, तेहवी तनु विछाय। आंखें आंसू नाखती, धरती दृष्टि लगाय॥ केसपास छूटइ थकई, डावई गाल दे हाथ।
नीसांसां मुख नाखती, दीठी दुख भर साथि॥२ कवि कृत 'सत्यतसिया दुष्काल वर्णन छत्तीसी' भी आदि से अन्त तक करुणरस प्रधान है। 'सत्यासिया दुष्काल वर्णन छत्तीसी' और 'चम्पक श्रेष्ठी चौपाई' में दुष्काल का किया गया चित्रण, हमारी हत्तन्त्री को झकझोर डालता है। उदाहरणार्थ -
मतकैरस्थिग्रामे जाते श्रीपत्तने नगरे ॥ भिक्षुभयात् कपाटे जटिते व्यवहारिभिर्भशं बहुभिः । पुरुषैर्माने मुक्ते सीदति सति साधु वर्गेऽपि ।। जाते च पञ्च रजतैर्धान्यमाणे सकलवस्तुनि महयें। परदेशगते लोके मुक्त्वा पितृमातृबन्धुजनान् ।। हाहाकारे जाते मारिकृतानेकलोकसंहारे ।
केनाप्यदृष्टपूर्व निशि कोलिक लुण्टते नगरे ॥३ 'अधोलिखित पद्य में निर्दिष्ट स्थिति कितनी दयनीय है --
जे पंचामृत जीमता रे, खाता द्राख अखोड़।
कांटी खाये खोरड़ी रे, के खेजड़ ना छोड॥ कविवर का अन्तिम जीवन अत्यन्त दुःखमय रहा। एक ओर वृद्धावस्था, दूसरी ओर दुर्भिक्ष से जर्जरित देह देखकर कवि का मन व्यथित हो जाता है। कवि के अनेक शिष्य थे। उन्होंने अपने शिष्यों के लिए बहुत-कुछ किया, किन्तु ऐसे समय में सभी उनका साथ छोड़ गये। यदि ते न गुरोर्भक्ताः शिष्य किं तैर्निरर्थकैः', कहते हुए कवि का हृदय रो उठता है। शोक-सिन्धु में निमग्न कवि दूसरों को भी सचेत करता है -
१. वही (९.५.१२) २. सीताराम-चौपाई (६.१.२३-२५) ३. विशेष-शतक, प्रशस्ति (१-४) ४. चम्पक-श्रेष्ठी चौपाई (२.९.६) ५. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, गुरु-दुःखितवचनम् (१-संस्कृत)
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