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________________ समयसुन्दर की रचनाओं में साहित्यिक तत्त्व ३४५ में नींद न आने के कारण। इसके अलावा मैं अपने प्रेमी को पत्र भी नहीं लिख सकती, क्योंकि पत्र लिखते समय वह अश्रुनदी से आर्द्र हो जाता है - प्रीतड़िया न कीजइ हो नारि परदेसियां रे, खिण खिण दाझइ देह। वीछडिया वाल्हेसर मलवो दोहिलउ रे, सालइ अधिक सनेह ॥ राति नइ तउ नावइ वाल्हा नींदड़ी रे, दिवस न लागइ भूख। अन्न नइ पाणी मुझ नइ नवि रुचइ रे, दिन-दिन सबलो दुःख ॥ मन ना मनोरथ सवि मन मा रह्या रे, कहियइ केहनइ रे साथि। कागलिया तो लिखतां भीजइ आंसुआं रे, आवइ दोखी हाथि ॥ कोशा की निम्नलिखित पंक्तियाँ भी उपर्युक्तवत् अत्यन्त मार्मिक हैं - पर दुक्ख जाणइ नहीं पापिया रे, दुसमण घालइ विचइ घात रे। जीव लागउ जेहनउ जेहस्यु रे, किम सरइ कीधां विण वात रे॥ त्रोटी नवि प्रीति त्रुटइ नहीं रे, त्रोटतां ते त्रूटइ माहरा प्राण रे। कहउ केही परि कीजीयइ रे, तुम्हें जउ चतुर सुजाण रे ॥२ नल के बिछुड़ जाने पर दमयन्ती को जो विरह-व्यथा होती है, उसे कवि ने मूर्तिमन्त बना दिया है। यहाँ तक कि सूर्य के लिए भी दमयन्ती की विरह-वेदना का अवलोकन कर पाना असह्य हो गया है, अतः वह भी अस्ताचल की ओर गतिमान हो जाता है - रवि जाण्यु ए विरहणी, मत मुझ मरइ हजूर। देखी न सकुं हुं नजरि, तिण आथमीयउ सूर ॥३ चन्द्रोदय होने पर दमयन्ती चन्द्र के माध्यम से अपने प्रिय को हृदयस्पर्शी विरह-सन्देश कहलाती है। कवि ने यह विरह-सन्देश विस्तारपूर्वक वर्णित किया है। पुण्यसार जब वल्लभी की सप्त श्रेष्ठि-पुत्रियों से विवाह कर उन्हें छोड़ कर चला जाता है, तो वे पति-वियोग में रोती-रोती मूर्छित होकर भूमि पर गिर पड़ीं। उनके विरहोद्गार पाठक के हृदय को विचलित कर देते हैं। रुद्र पुरोहित ने रत्नवती के प्रति कामासक्त होकर सिंहलसिंह को समुद्र में धकेल दिया। प्रियतम के विरह-पाश में जकड़ी रत्नवती की दशा असह्य है। वह देव तक को भी उपालम्भ देती है - १. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, श्री स्थूलिभद्र गीतम् (१, ३-४) २. वही, स्थूलिभद्र गीतम्, ३-४ ३. नल-दवदन्ती रास, खण्ड ३, ढाल ४ से पूर्व, दोहा २ ४. द्रष्टव्य – वही, ३-४ ५. द्रष्टव्य – पुण्यसारचरित्र चौपाई (१०.१-८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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