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________________ समयसुन्दर का वर्णन - कौशल ३२५ दमयन्ती के स्वयंवर के लिए भीम राजा ने एक विशाल एवं अभिराम मंडप की रचना करवाई। ललाम चित्र, परवाल मोती की बनी जालियाँ, स्वर्ण के झूमके, ऊँची ध्वजायें, उस मण्डप की शोभा में चार चांद लगा रहे थे। वह पुष्प, चन्दन, कपूर, धूप आदि की सुगन्ध से सुगन्धित था । मण्डप इतना रम्य था कि देव भी उससे मोहित हो जाते । कवि ने इस मण्डप का आलेखन इस प्रकार किया है. आणंदसुं राजा आवइ, संबरा मण्डप मण्डावइ । सरिषी धरती समरावइ, निरमल नीरसुं छंटावइ ॥ जाजिम जरबाप विछावइ, सकलातिकथी पऊसुहावइ । पाटम्बर पणि पथरावइ, फूल पगर विच्छित्ति वणावइ ॥ वावी चिहुंदिसि वाडी, दरसाउ भांति दिषाडि । चीर्या फूटरा चित्राम, नारी कुंजर अभिराम ॥ तिहां ताण्यां ऊँचा तम्बू कसबी जरबाप कदम्बू । नीलक मुखमल नवरंग, चिहुंदिसि चंद्रुया चंग ॥ मनोहर मोतीयांरी जाली, प्रोई विचिमइ परवालि । झबझब - झबझब कंइ झाबा, बालक मांगइ दे बाबा ॥ ललकण सोनारा लटकइ, गुण पांम्या ते भणी गटकइ । मोतीयांरी झामर झोल, झाबक झुंब करम झोल ॥ लांबी लहकइ फूलमाल, परिमल महकइ सुविसाल । ऊपरि ऊँची धज सोहइ, सुर किन्नर ना मन मोहइ ॥ कृष्णागर अगर कपूर, सेलारस चीडनउ चर । धूपधांण गंध सुवास, ऊछलई परिमल आगास ॥ पूतली थांभे सिणगारी, ग्रहणे गांठे करि सारी । जाणे अपछर जोवा आई, जायइ नहीं रही लपटाई ॥ सिंहासन मण्डप मांहे, अति ऊँचा मांड्या उछाहे । परवाली कनकमय पाया, विचि लाल दुलीचा विछाया । मणि माणिक मोती झडिया, घणुं षांति संघाति घडिया ॥ १ ८. विवाह - वर्णन समयसुन्दर के साहित्य में विवाह वर्णन भी हुआ है। उनके नायक पराक्रम, रूप अथवा गुणों के कारण विविध प्रसंगों पर भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अनेक युवतियाँ प्राप्त करते हैं। प्राचीनकाल में माता-पिता भी अपने पुत्र-पुत्री के योग्य आयु पाने पर उनके विवाह के लिए योग्य वधु या वर की खोज करते थे। योग्य वर की प्राप्ति के लिए स्वयंवर १. नल - दवदंती रास (१.३.१ - ११ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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