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________________ समयसुन्दर का वर्णन-कौशल ३०९ वस्तु-वर्णन काव्य का अनिवार्य अंग है। उसके द्वारा कवि के व्यापक अनुभव और अन्वीक्षण-शक्ति का पता लगता है। हमारे विवेच्य कवि समयसुन्दर का वर्णनकौशल विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उनकी पद्य-कृतियों में तो उनका कौशल मुखरित हुआ ही है, गद्य कृतियों में भी इसे सहजतः देखा जा सकता है। 'कालिकाचार्यकथा' यद्यपि एक गद्यात्मक रचना है, परन्तु उसमें आद्योपान्त वस्तु-वर्णन के दर्शन होते हैं और सभी विस्तृत एवं प्रभावशाली हैं। समयसुन्दर अपने सूक्ष्म निरीक्षण द्वारा वस्तुओं के अंग-प्रत्यंग, वर्ण, आकृति और उसकी निकटतम एवं दूरतम परिस्थिति का परस्पर संश्लिष्ट विवरण देते हैं। वे अपनी वर्णनीय वस्तु का इतना सूक्ष्म और सप्राण वर्णन करते हैं कि उसमें सुन्दर-बिम्ब मूर्तरूप हो जाता है। अनुभूत जगत् से उठाए हुए बिम्ब ही उनके वर्णन-कौशल की नींव हैं। वे प्रसंग मिलते ही वर्णनीय वस्तु का बिम्ब ग्रहण करने की चेष्टा करते हैं। उन्होंने विभिन्न वर्णनों में विभिन्न प्रकार से अपनी पटुता प्रदर्शित की है। वर्णन-कौशल के कारण ही उनकी रचनाएँ निरन्तर मूर्त्तवस्तु का दर्शन कराती है। प्रस्तुत अध्याय में हम समयसुन्दर के वर्णन-कौशल की चर्चा करेंगे। १. प्रकृति-वर्णन आरम्भ से ही मानव-मन प्रकृति के प्रति संवेदनशील रहा है। प्रकृति मानव की चिर सहचरी है। चिन्तन-मनन एवं कलात्मक सृजन के लिए यह उसे सदैव प्रेरित करती रही है। काव्य का सृजन भी प्रकृति की गोद में होता है। कवि सामान्य मानव की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होता है। वह प्रकृति की प्रत्येक घटना से साधारणीकरण कर लेता महाकवि समयसुन्दर ने अपने काव्यों में प्रकृति का सुन्दर चित्रांकन किया है। उन्होंने प्रकृति-वर्णन साधन रूप की अपेक्षा साध्य रूप में प्रस्तुत किया है। काव्यशोभा के वर्द्धन के लिए कवि ने अलंकार के रूप में प्राकृतिक वस्तुओं एवं उसके उपकरणों का प्रयोग किया है। कविवर ने जड़ रूप तथा चेतन रूप प्राकृतिक उपकरणों पर मानवीय चेतना, उसके सजीव व्यक्तित्व एवं क्रिया-कलापों का भी स्थान-स्थान पर आरोपण किया है। कवि ने प्रकृति के यथातथ्य चित्र भी अंकित किये हैं, जिनमें प्रकृति अप्रस्तुत की व्यञ्जना की भी माध्यम बनी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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