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________________ ३०० महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व मणुण्णं कलाकेलिरूवाणुगारं, स्तुवे पार्श्वनाथं गुणश्रेणिसारम् ॥ सुआ जेण तुम्हाण वाणी सहेवं, गतं तस्य मिथ्यात्वमात्मीयमेयम्। कहं चंद मज्झिल्ल पीउसपाणं, विषापोहकृत्ये भवेनं प्रमाणम् ॥ - पार्श्वनाथ लघु स्तवनम् (१-२) हिन्दी-संस्कृत भलूं आज भेटयुं प्रभो पादपद्मम्, फली आस मोरी नितान्तं विपद्मम्। गयूं दुःख नासी पुनः सौम्यदृष्ट्या, थयूं सुख झाझुं यथा मेघवृष्ट्या॥ जिके पार्श्वकेरी करिष्यन्ति भक्ति, तिके धन्य वारु मनुष्या प्रशवितम्॥ भली आज वेला मया वीतरागाः, खुशी मांहि भेट्या नमदेवनागाः॥ __ - श्री पार्श्वनाथाष्टकम् (१-२) २.१० पादपूर्ति-शैली कवि समयसुन्दर की विविध प्रतिपादन शैलियों में पाद-पर्ति-शैली एक है। इस शैली के अन्तर्गत हम समयसुन्दर की समस्यापूर्ति-शैली को भी समाहित करते हैं। पादपूर्ति शैली में किसी अन्य कवि की रचना के छन्द के एक चरण को लेकर उसी छन्द में शेष चरणों की पूर्ति की जाती है। इसी तरह समस्यापूर्ति शैली में किसी समस्या के आधार पर कोई छंद बनाकर प्रस्तुत किया जाता है। कवि उक्त दोनों शैलियों में सिद्धहस्त थे। समस्यापूर्ति एवं पाद-पूर्ति करना उनके लिए सामान्य बात थी। साधारणतया इस शैली में लिखना कठिन होता है, केवल निष्णात कवि ही इस शैली में लिखने का साहस कर सकता है। वस्तुतः इस शैली में रचना करने के लिए प्रखर प्रतिभा तथा कवि सुलभ अचिन्त्य चेतना अनिवार्य होती है। जिस पाद या समस्या की पूर्ति करनी है, उसके भावों की रक्षा, रचना-माधुर्य, रस-प्रवाह आदि का निर्वाह अत्यन्त आवश्यक होता है। समयसुन्दर इस कसौटी पर पूर्ण खरे उतरे हैं। श्री जिनसिंहसूरि पदोत्सवकाव्य (रघुवंश तृतीय सर्ग पाद पूर्ति), ऋषभ भक्तातर स्तोत्रम् (भक्तामर स्तोत्र पादपूर्ति) समस्याष्टकमं समस्यामयं पार्श्वनाथ वृहत्स्तवनम् आदि रचनाएँ इन्हीं शैलियों में निबद्ध हैं। समस्यापूर्ति में तो समयसुन्दर इतने कुशल थे कि उन्होंने एक समस्या की पूर्ति भी भिन्न-भिन्न प्रकार से की है। यथा - 'शतचन्द्रनभस्तलम्' समस्या पूर्ति - प्रभुस्नात्रकृते देवानीयमानान् नभे घटान्। रौप्यान् दृष्ट्वा नरा: प्रोचुः शतचन्द्रनभस्तलम्॥ रामया रममाणेन कामोद्दीपनमिच्छता। प्रोक्तं तच्चारु यद्येवं शतचन्द्रनभस्तलम्॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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