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________________ २६० महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व विचारों ने उसका मार्ग बदल दिया। उन्होंने प्रव्रज्या अंगीकार की और गिरनार पर्वत पर तपस्या करके कैवल्य प्राप्त किया। उधर राजुल पति वियोग में झुलसती रही। अन्त में वह नेमि के पास दीक्षित हो गई। दोनों ने सिद्धत्व प्राप्त किया। ६.७.१.१.४ नेमिनाथ-फाग इसमें नेमिनाथ क्रीड़ित फाग का मनोहर चित्रण हैं। कृष्ण की पत्नियाँ खेलखेल में उन्हें विवाह करने के लिए विवश करती हैं। तंग आकर उन्होंने विवाह की स्वीकृति दे दी। गीत की कुछेक पंक्तियाँ तो बड़ी ही रसप्रद हैं - आहे लाल गुलाल चिहुँ दिसइ, उड़त अवल अबीर। आहे केसर भरि-भरि पिचकारा, छांटत सामि सरीर ॥ प्रारम्भिक ६ गाथाओं में फाग का वर्णन है और अन्तिम ७ गाथाओं में नेमिनाथ की जीवनी की प्रमुख बातों का। इनका वर्णन हम नेमिनाथ सोहलागीतम् में कर आए हैं। गीत का प्रणयन-काल अज्ञात है। ६.७.१.१.५ नेमिनाथ बारहमासा प्रस्तुत गीत में चैत, वैशाख, जेठ आदि बारह महीनों की प्राकृतिक विशेषताओं का वर्णन विरहिनी राजुल के मुँह से कराया गया है। बारहमासा पर कवि की यही एकमात्र रचना है। द्रष्टव्य है आश्विन मास का चित्रण - आसु अमी झरइ चंद, संयोगिनी सुखकंद। निरमल थया सर नीर, नेमि बिना हुँ दिलगीर ॥ यह गीत १४ पद्यों में निबद्ध है। इसका रचना-काल अनिर्दिष्ट है। ६.७.१.१.६ श्री नेमिनाथ गीत प्रस्तुत गीत ६ गाथाओं में गुम्फित है। नेमिनाथ श्यामवर्णी थे, तथापि अनेक गुणों के भण्डार थे। राजुल उन्हें हृदय से प्रेम करती थी और उन पर मुग्ध थी। नेमिनाथ को वही समझ सकता है, जो राजुल-सा हृदय रखता है। आँख में अंजन, वृन्दावन में श्री कृष्ण, कृषकों में मेघ आदि ये सभी काले होते हुए भी प्रिय और आनन्दप्रद होते हैं, उसी प्रकार राजुल को नेमिनाथ श्याम रंगी होते हुए भी प्रिय हैं। गीत का रचना-काल अनुपलब्ध है। ६.७.१.१.७ नेमिनाथ राजीमति सवैया प्रस्तुत गीत त्रुटित और अपूर्ण रूप में उपलब्ध हुआ है। गीत के प्रथम ८ पद्य अप्राप्त हैं। नवमें पद्य में प्रथम, द्वितीय और अर्द्ध तृतीय पाद त्रुटित हैं। शेष तैंतीस पद्य पूर्ण हैं। चौंतीसवें पद्य का डेढ़ पाद सुरक्षित है। इतना तो निश्चित है कि इस कृति में कम से कम ३४ पद्य थे, परन्तु कृति कितने पद्यों में रची गई, यह नहीं कहा जा सकता। प्रत्येक पद्य के अन्तिम पाद में 'समयसुन्दर' का नाम उल्लिखित होने से कृति की प्रामाणिकता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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