SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 268
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समयसुन्दर की रचनाएँ ६. ६.१२ देवगति - प्राप्ति गीतम् प्रस्तुत गीत ६ गाथाओं में है । इसके रचना - काल का उल्लेख कवि ने नहीं किया है । गीत में जिन कारणों से देवगति की प्राप्ति होती है, उनका उल्लेख किया गया है। ६.६.१३ नरकगति - प्राप्ति गीतम् इस रचना में जिन-जिन दुष्कर्मों के कारण नरक -गति प्राप्त होती है, उनका उल्लेख करते हुए कवि ने धर्म करने के लिए निवेदन किया है, क्योंकि इसी से मनुष्य सद्गति को प्राप्त होगा । २५३ रचना में १० पद्य हैं। रचना - काल एवं रचना - स्थान असूचित है । ६.६.१४ व्रत-पच्चक्खाण गीतम् - प्रस्तुत गीत में कवि ने व्रत, प्रत्याख्यान ग्रहण करने पर बल दिया है । कवि ने अपनी समसामयिक धार्मिक परिस्थिति को व्यक्त करते हुए जैनियों पर व्यंग्य कसा है कि वृद्धजन प्रहर दो प्रहर पश्चात् भोजन ग्रहण करते हैं, तथापि 'नवकारसी' का प्रत्याख्यान नहीं लेते। लोग रात्रि में एक बार भी जल सेवन नहीं करते, परन्तु फिर भी ' चउविहार' का प्रत्याख्यान नहीं करते । माह में १० तिथियों में सचित्त हरी वस्तुएँ नहीं खाते, लेकिन प्रत्याख्यान के अभाव में वे उनसे होने वाले पापों का भार ढोते हैं। लोग सभी कार्यों से निवृत्त रहते हैं, परन्तु परमेश्वर का नाम-स्मरण नहीं करते। तथ्य यह है कि विनय, विवेक, धर्म का अभाव होते हुए भी वे श्रावक कहलाते हैं अथवा चारित्रशून्य होकर भी साधु, 'साधु' कहलाते हैं। यह गीत ११ पद्यों में निबद्ध है। इसका रचना - काल अनिर्दिष्ट है । ६. ६.१५ हित - शिक्षा गीतम् 'हित - शिक्षा गीतम् ' १० पद्यों में निबद्ध है । इसमें जीवन निर्माण की प्रेरणा और दुर्गुणों से दूर रहने की शिक्षा दी गई है। गीत का सातवाँ पद्य अर्द्धत्रुटित है । गीत का रचना-काल अज्ञात है। ६.६.१६ नववाड़ शील गीतम् प्रस्तुत गीत की रचना वि० सं० १६७० के आश्विन मास में अहमदाबाद में हुई थी । गीत १३ पद्यों में आबद्ध है। प्रस्तुत रचना में शील की उन नव वाड़ों का विवेचन किया गया है, जिनके आधार पर साधक का शील ठहरता है अर्थात् ब्रह्मचर्य सुरक्षित रहता है। ये नववाड़ इस प्रकार हैं १. स्त्री जिस स्थान पर रहती है, ब्रह्मचारी वहाँ न ठहरें, (२) श्रृंगाररसोत्पादक स्त्री कथा न करें, (३) स्त्रियों के साथ एक आसन पर न बैठें, (४) स्त्रियों के अंगोपांग विषय - बुद्धि से न देखें, (५) आस - पास से आते हुए स्त्रियों के कुंजन, गायन, हास्य, क्रन्दित शब्द, रुदन और विरह से उत्पन्न विलाप को न सुनें, (६) गृहस्थावस्था Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy