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________________ १० महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व प्रबन्धकोष से ज्ञात होता है कि चण्डप इस वंश के प्रथम पुरुष रहे हैं । प्राचीन कवियों द्वारा वर्णित 'प्रज्ञाप्रकर्ष प्राग्वाटे' वाक्य इस वंश की बुद्धि-वैभव की विशेषता को प्रकट करता है । विमल प्रबन्ध में पोरवाल - जाति की सप्त विशेषताओं में चतुर्थ विशेषता 'चतुः प्रज्ञाप्रकर्षवान' निर्दिष्ट है, जो 'पोरवाल जाति का इतिहास' के अवलोकन से सत्य सिद्ध होती है । श्रीपाल, वस्तुपाल, तेजपाल, विजयपाल, ऋषभदास प्रभृति इस जाति की प्रज्ञाप्रकर्षता के जाज्वल्य उदाहरण हैं । पूर्व परम्परा को अक्षुण्ण रखने के लिए इस जाति ने हमारे विवेच्य कवि को भी जन्म दिया । कवि को जिस ' धर्मश्री' नामक साध्वी ने सतत् सत्प्रेरणा प्रदान की थी, वह भी प्राग्वाटवंश - रत्ना थी । इसी कारण कवि के सुशिष्य वादी हर्षनन्दन ने कवि को 'धर्मश्रीआर्यिका - पुत्र' कहा है । इस तथ्य की ओर अभी तक विद्वानों का ध्यान आकर्षित नहीं हुआ है। यह विचारणीय है कि आर्या धर्मश्री का उन पर ऐसा कौन सा उपकार रहा, जिसके कारण उन्हें 'धर्मश्री आर्यिका - सूनु कहा गया। १२ समयसुन्दर पोरवाल जाति के थे, इसका उल्लेख परवर्ती कवि देवीदास ने भी अपने 'समयसुन्दर - गुरु-गीत '३ में किया है। वादी हर्षनन्दन ने भी इस प्रमाण की पुष्टि 'मध्याह्न - व्याख्यान-पद्धति ४, 'ऋषिमंडलवृत्ति ५, श्रीसमयसुन्दरोपाध्यायनां गीतम् ६, 'उत्तराध्ययन-वृत्ति ७ आदि अपनी कृतियों में की है। 4 ८. गृहस्थ जीवन कवि का जन्म - स्थान, माता-पिता और वंश - केवल ये तीन ही उल्लेख कवि के गृहस्थ जीवन के सम्बन्ध में प्राप्त होते हैं। उनका प्रारम्भिक अध्ययनकाल और बाल्यकाल किस प्रकार व्यतीत हुआ, किन परिस्थितियों में उनका पालन हुआ, इन सब के विषय में कोई भी निश्चित प्रमाण नहीं मिलता है । अतः कवि के गृहस्थ जीवन के सन्दर्भ में किसी प्रकार की जानकारी प्रस्तुत नहीं की जा सकती है। जहाँ तक उनके प्रौढ़ अध्ययन का प्रश्न है, वह गृहस्थाश्रम में न होकर दीक्षा के पश्चात् ही हुआ होगा, , क्योंकि १. मन्त्रिमंडलमार्तण्डश्चण्डपः प्रथमः पुमान् । कुले तिस्मन्नुदेति स्म, तमसामवसान कृत् ॥ -कीर्ति कौमुदी, वस्तुपालवंशवर्णनम्, तृतीय सर्ग, पृष्ठ १३ २. प्राग्वाट - वंश - रत्ना धर्मश्री मज्जिकासूनुः । - ऋषिमंडलवृत्ति ३. वंश पोरवाड़ विख्यातो जी— नलदवदंती - रास, परिशिष्ट ई, पृष्ठ १३६ ४. प्रज्ञाप्रकर्ष प्राग्वाटे इति सत्यं व्यधायि य:- मध्याह्न व्याख्यान-पद्धति ५. प्राग्वाट - वंश - रत्ना धर्मश्री मज्जिकासूनुः । ऋषिमंडलवृत्ति ६. परगड़ वंश पोरवाड़ । नलदवदंती - रास, परिशिष्ट ई ७. प्राग्वाट शुद्धवंशा षडभाषागीतिकाव्यकर्तारः । उत्तराध्ययनवृत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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