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________________ २१८ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व वर्तमान में जैन तीर्थों के संबंध में निम्नलिखित ग्रन्थ उल्लेखनीय है (क) जैन तीर्थ सर्वसंग्रह' (ख) भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ (ग) तीर्थ-दर्शन ३ I तीर्थ-यात्रा आत्म-विशुद्धि का कारण है। गृह के अशान्त वातावरण एवं गृहमोह से मुक्त होकर धर्माचरण किया जा सके, इसलिए तीर्थ-यात्रा स्पृहणीय है। तीर्थदर्शन एवं वन्दन से पुण्य का संचय, कषायों का संवरण और तीर्थ स्थल के पवित्र परिवेश से भावों में निर्मलता की प्राप्ति होती है । कविवर समयसुन्दर ने जैन तीर्थों एवं तीर्थाधिपतियों की मुक्त कण्ठ से स्तुति की है। उन्होंने अनेक तीर्थ-यात्राएँ कीं और आत्म-विभोर हो, अनेक स्तवन-स्तोत्र रचकर तीर्थनायकों के चरणों में श्रद्धा और भक्तिपूरित पुष्प बिखेरे। यहाँ तीर्थ एवं तीर्थाधिपतियों से संबंधित गीतों का विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है ६.२.१ संस्कृत भाषा में निबद्ध गीत ६.२.१.१ तीर्थमाला वृहत्स्तवनम् तीर्थ - वन्दना संबंधी गीतों में समयसुन्दर का प्रस्तुत गीत विश्रुत है । यह गीत १९ गाथाओं में आबद्ध है। इसका मुद्रण अनेक स्थानों से और अनेक ग्रन्थों में हुआ है। किसी-किसी ग्रन्थ में इस गीत की केवल १७ गाथाएँ ही उपलब्ध होती हैं। इसका रचनाकाल कवि ने नहीं दिया है। ६.१.१.२ तीर्थमाला वृहत्स्तवनम् कविवर ने इसके रचना - काल का निर्देश नहीं किया है, यद्यपि उन्होंने इस कृति में एक संकेत अवश्य दिया है, जिससे इसके रचना - काल का अनुमान किया जा सकता है राणपुरे जिनमंदिर-मतिरम्यं, श्रूयते सदा मयका । धन्यं मम जन्म तदायदा, करिष्यामि तद् यात्राम् ॥ 1 'यदा करिष्यामि तद् यात्राम्' से स्पष्ट संकेत मिलता है कि कवि ने इस रचना का प्रणयन राणकपुर तीर्थ की यात्रा करने के पूर्व ही किया होगा । कवि की अन्य कृति 'राणकपुर आदि जिन स्तवन' में प्राप्त उल्लेख से ज्ञात होता है कि कवि ने वि० सं० १६७२ में राणकपुर तीर्थ की यात्रा की थी । अतः उससे पहले ही इस रचना का निर्माण हुआ था । नाहटा - बन्धु ने इसे सं० १६६६ के पश्चात् प्रणीत होने का अनुमान लगाया है। १. सेठ आनन्दजी कल्याणजी, अहमदाबाद से प्रकाशित २. भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी, मुम्बई ४ से प्रकाशित ३. श्री महावीर जैन कल्याणक-संघ, चेन्नई से प्रकाशित ४. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पृष्ठ ६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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