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________________ समयसुन्दर की रचनाएँ २०३ ४.३.४ दान-शील-तप-भाव-संवाद विवेच्य कृति के शीर्षक से ही स्पष्ट है कि इसमें दान-शील-तप एवं भाव के संबंध में विवेचन है। ये चारों धर्म-रथ के चतुष्चक्र हैं । कवि समयसुन्दर बताते हैं कि जब भगवान् महावीर राजगृह-उद्यान में देशना देने हेतु समवसरण पर आसीन हुए, तब दान, शील, तप और भाव क्रमशः प्रत्येक ने भगवान् से निवेदन किया कि सर्वप्रथम आपके प्रवचन में मेरी ही प्रशंसा की जाये। कवि ने जिस चातुर्य के साथ इन चारों के संवाद में अपने गुणों की प्रशंसा और दूसरों की निन्दा करवाई है, वह वस्तुतः ज्ञानवर्द्धक होने के साथ ही साथ मनोरंजक भी हो। अन्त में महावीर ने चारों को सान्त्वना देने के लिए स्वयं चतुर्मुख होकर इस चतुर्विध धर्म की प्ररूपणा की। प्रस्तुत कृति में समग्र १०१ पद्य हैं, श्लोक-गणना के आधार पर १३५ श्लोक परिमाण है। यह कृति सांगानेर के पद्मप्रभ जिनालय में उनके प्रसाद से कवि ने निर्मित की। प्रस्तुत कृति जिस ग्रन्थ में मुद्रित है, उसमें इसका रचना-काल इस प्रकार दिया गया है - सोलइ सइ छांसठि समइ रे, सांगानयर मझारि। पदम प्रभु सुपसाउलइ रे, एह भण्यउ अधिकारो रे ॥ उपर्युक्त पंक्तियों से प्रस्तुत कृति का रचना-काल वि० सं० १६६६ सिद्ध होता है, किन्तु हमें इसकी मूल पाण्डुलिपियों में 'छासठि' शब्द के स्थान पर अधिकतर 'वासठि' शब्द का प्रयोग उपलब्ध हुआ है। मोहनलाल द० देसाई ने भी इसका रचनाकाल १६६२ उल्लिखित किया है। अतः इसका रचना-काल वि० सं० १६६२ ही अधिक उचित लगता है। विद्वानों ने प्रस्तुत कृति का अलग-अलग नामकरण किया है। महोपाध्याय विनयसागर के अनुसार इसका नाम 'दानादि चौढालिया' है और नाहटा-बन्धुओं के अनुसार दान-शील-तप-भावना-संवाद शतक' है, जबकि कविवर ने इसका नाम 'दानशील-तप-भावना-संवाद' ही रखा है - दान शील तप भावना रे, सरस रच्यउ संवादो रे। भणतां गुणतां भावसुं रे, रिद्धि समृद्धि सुप्रसादो रे॥ प्रस्तुत कृति में १०० या १०१ पद्य होने से यदि इसका नाम दान-शील-तपभावना-संवाद-शतक रखा जाए, तो असंगति पूर्ण नहीं होगा। दान-शील-तप-भावना-संवाद-शतक की हस्तलिखित पाण्डुलिपि अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में है। इसका प्रकाशन 'समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि' नामक ग्रन्थ में हुआ है। १. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, दान-शील-तप-भाव-संवाद-शतक (५,६), पृष्ठ ५९३ २. आनन्द-काव्य-महोदधि, मौक्तिक ७, कविवर समयसुन्दर, पृष्ठ ३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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