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________________ २०० महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ४.२.७ आलोयणा-छत्तीसी ___जैनों के अनुसार अपने किये हुए पापों का विवेचन या प्रकाशन करना ही आलोचना है। कवि ने इस कृति में वर्तमानकालिक और भूतकालिक कृत पापों की आलोचना करना अपरिहार्य बताया है। इस कृति में ३६ पद हैं। कृति में उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर ज्ञात होता है कि कवि ने वि० सं० १६९८ में अहमदपुर में इसकी रचना की थी। कवि स्वयं लिखते हैं - संवत सोल अट्ठाणुए, अहमदपुर मांहि । समयसुन्दर कहइ मई करी, आलोयणा उच्छाहि॥ प्रस्तुत आलोच्य कृति जैन-समाज में नित्य कर्म में प्रायः बोली जाती है। अतः इसका प्रकाशन भी अनेक ग्रन्थों में और अनेक स्थानों से हुआ है। इस कृति का सर्वप्रथम प्रकाशन 'आत्म-हितोपदेश' ग्रन्थ में हुआ है, जो कि शाह बालाभाई खुशाल हाजी, निशापोल, अहमदाबाद से प्रकाशित है। ४.३ अन्य रचनाएँ इस शीर्षक के अन्तर्गत हम उन वृहत् भाषा-रचनाओं का समावेश करेंगे, जो पूर्वोक्त दोनों वर्गों से भिन्न हैं। ऐसी रचनाएँ हैं४.३.१ यति-आराधना ४.३.२ साधु-वन्दना ४.३.३ केशी-प्रदेशी-प्रबन्ध ४.३.४ दान-शील-तप-भाव-संवाद उपर्युक्त रचनाओं का परिचय नीचे प्रस्तुत है४.३.१ यति-आराधना प्रस्तुत कृति 'यति-आराधना' तथा 'साधु आराधना' – दोनों नामों से प्रसिद्ध है, क्योंकि ग्रन्थारम्भ में 'साधु-आराधना' शब्द का प्रयोग किया गया है और ग्रन्थान्त में 'यति-आराधना' का। वस्तुतः यति और साधु दोनों पर्यायवाची शब्द हैं, अतः शब्दों में अन्तर होते हुए भी दोनों के अर्थ में अन्तर नहीं है। प्रस्तुत कृति गद्य में है। इसकी भाषा प्राचीन हिन्दी है, किन्तु कृति के आदि एवं अन्त में भूमिका व उपसंहार संस्कृत-पद्य में हैं। यद्यपि श्री अगरचन्द नाहटा ने इस कृति को संस्कृत-भाषा में विरचित माना है, किन्तु यह कृति संस्कृत-भाषा में रची हुई नहीं है, अपितु प्राचीन हिन्दी में है। इसका रचना-काल विक्रम संवत् १६८५ और रचनास्थान रिणीनगर है। जैन साधुओं के आचार तथा साधना-पद्धति का निरूपण करना ही इसका प्रतिपाद्य विषय है। ___ यह भी उल्लेखनीय है कि 'श्रावकाराधना' एवं 'यति-आराधना' दोनों का वर्ण्यविषय एक-सा है। अन्तर केवल इतना ही है कि 'श्रावकाराधना' श्रावक की अपेक्षा १. सीताराम-चौपाई, सम्पादकीय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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