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________________ १९६ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व द्रौपदी का पाँचों पाण्डवों के साथ विधिवत् विवाह सम्पन्न हुआ और वह उनके साथ हस्तिनापुर जाकर आनन्दपूर्वक रहने लगी।। एक बार नारद ऋषि हस्तिनापुर आए। सबने उनका यथोचित सम्मान आदि किया, लेकिन द्रौपदी अपने आसन पर ही बैठी रही। नारद द्रौपदी से रुष्ट हो गए। उन्होंने उससे बदला लेने का विचार किया। वे आकाश-पथ से अमर-कंका के राजा पद्मनाभ के पास पहुँचे। द्रौपदी के सौन्दर्य की अतिशय प्रशंसा करके पद्मनाभ को उसके प्रति ललचाया। पद्मनाभ ने दैवी सहायता से द्रौपदी का हरण करवाया। (महाभारत में द्रौपदी का चीर-हरण होता है, किन्तु जैन-परम्परा में स्वयं द्रौपदी का ही अपहरण हो जाता है।) अब द्रौपदी का जीवन संस्कारित हो चुका था। पद्मनाभ ने जब उसे भोग के लिए निमन्त्रित किया, तो उसने छह मास की अवधि मांगी, क्योंकि उसे विश्वास था कि इस अवधि में श्रीकृष्ण यहाँ आकर उसका अवश्य उद्धार करेंगे। हुआ भी यही। कृष्ण पाण्डवों सहित अमरकंका पहुँच गये। सर्वप्रथम पद्मनाभ से पाण्डवों का युद्ध हुआ, किन्तु जब पाण्डव उसे हरा न सके, तो कृष्ण रणाङ्गण में उतरे। उन्होंने उसे पराजित किया और द्रौपदी का उद्धार किया। पद्मनाभ द्रौपदी की शरण में आया। द्रौपदी ने उसे कृष्ण द्वारा क्षमा दिलवाई। वहाँ से हस्तिनापुर लौटते समय पाण्डवों को कुछ शरारत सूझी। उन्होंने नौका से गंगा पार की, लेकिन यह सोचकर नौका वापस नहीं भेजी कि देखें कृष्ण बिना नौका के गंगा कैसे पार कर पाएंगे। चलो, आज उनकी शक्ति की परीक्षा की जाये। कृष्ण ने भुजाओं से तैरकर गंगा को पार किया। वस्तुस्थिति ज्ञात होने पर कृष्ण वासुदेव कुपित हो उठे और उन्होंने पाण्डवों को देशनिर्वासन की आज्ञा दे दी। अन्त में कुन्ती के निवेदन पर कृष्ण ने दक्षिणसमुद्र के किनारे पाण्डु नामक नगरी बनाकर रहने की स्वीकृति दे दी। पाण्डवों ने वैसा ही किया। यथा समय द्रौपदी ने एक पुत्र का प्रसव किया। उसका नाम 'पाण्डुसेन' रखा गया। राज्य का संचालन करने योग्य होने पर उसे 'युवराज' बना दिया गया। एकदा एक स्थविर मुनि के उपदेश से पाण्डव प्रतिबुद्ध हो गये। उन्होंने पाण्डुसेन को राज्य सिंहासन पर आसीन किया और स्वयं दीक्षित हो गए। द्रौपदी ने अपने पतियों का अनुसरण किया। अन्त में पाण्डवों ने कर्मक्षय करके शत्रुजयगिरि पर मुक्ति प्राप्त की और द्रौपदी ने पाँचवाँ देवलोक प्राप्त किया। भविष्य में वह उत्तम अवतार ग्रहण करेगी। ४.२ छत्तीसी-साहित्य कविप्रवर समयसुन्दरकृत कुल सात छत्तीसियाँ प्राप्त हुई हैं। समयसुन्दर को छत्तीस की संख्या से बड़ा प्रेम था। उन्होंने अपने छोटे-छोटे गीतों को भी छत्तीस-छत्तीस के रूप में संकलित कर उसे छत्तीसी नाम दे दिया था। इनकी चर्चा हम फुटकर-साहित्य के अन्तर्गत करेंगे। यहाँ हम केवल उनके मौलिक छत्तीसी-साहित्य का परिचय देंगे। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित कृतियों का परिचय दिया जा रहा है - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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