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________________ समयसुन्दर की रचनाएँ १९३ __ आलोच्य कृति में कवि समयसुन्दर पुंजारत्न (पुंजरत्न) ऋषि के संबंध में कहते हैं कि गुजरात राज्य के राजित ग्राम में करडुआ पटिल गोत्र के गोरा नामक श्रमणोपासक रहते थे। उनकी पत्नी का नाम धनबाई था। श्रमणोपासक गोरा पार्श्वचन्द्रगच्छ के विमलचन्द्रसूरि से प्रतिबोध पाकर राजनगर में वि० सं० १६७० की आश्विन शुक्ला ९ को प्रव्रजित हो गया। तत्पश्चात् गोरा पुंजरत्न ऋषि के नाम से प्रख्यात हुआ। उसने अपने संयम-काल में उग्र तपस्या करके अपनी आत्मा को ग्रन्थियों से विमुक्त करने का अथक प्रयास किया। प्रस्तुत कृति में ऋषि के २८ वर्ष तक किये गये स्तुत्य तप का ही वर्णन है। कवि ने भाव-विभोर होकर इस ऋषि की तपस्या की अनुमोदना की है। कवि ने ऋषि कृत सभी तपों का अलग-अलग उल्लेख किया है। अन्त में कवि ने यह भी निर्देश दिया है कि सम्प्रति ऐसा कोई अन्य तपस्वी नहीं है - आज तो तपसी एहवो, पुंजा ऋषि सरीखो न दीसइ रे। तेहने वंदता विहरावतां, हरखेकरि हियड़ो हींसइ रे॥१ इस कृति में ३७ गाथाएँ हैं। इसकी हस्तलिखित प्रति श्री अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में है तथा प्रस्तुत कृति 'समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि' में प्रकाशित भी है। ४.१,१७ द्रौपदी-चौपाई 'द्रौपदी-चौपाई' समयसुन्दर की प्रतिभा से प्रसूत हुई, प्रौढ़तम कृतियों में से एक है। कवि की वृद्ध अवस्था में इस कृति का प्रणयन हुआ था। इसका रचना-काल विक्रम संवत् १७०० का माघ मास और रचना स्थल अहमदाबाद है, जैसा कि कवि ने लिखा है - अहमदाबाद नगर माहे, संवत् सतरह सइ वरसइ रे। माह मास थइ चउपई, हुंसी माणस ने हरषइ रे॥२ इस कृति के लेखन एवं इसके संशोधन में कवि के दो शिष्य सहायक बने - १. वाचक हर्षनन्दन और २. हर्षकुशल। कवि ने स्वयं उपर्युक्त तथ्य का स्पष्ट संकेत किया है वाचक हर्षनन्दन वली, हरषकुसलइ सानिध कीधी रे। लिखण सोझण साहाय्य थकी, तिण तुरत पूरी कर दीधी रे ॥३ प्रस्तुत कृति में द्रौपदी की कथा निबद्ध है। इसका मूल कथानक 'ज्ञाताधर्मकथांग' के 'दोवई' (द्रौपदी) नामक अध्ययन पर आधारित है। चौपाई तीन खण्डों में विभाजित है और इनमें सब मिलाकर ३४ ढालें हैं। सम्पूर्ण रचना १००१ श्लोक प्रमाण है। अभी तक इस कृति का प्रकाशन नहीं हुआ है। १. पुंजारत्न-ऋषि-रास (३५) २. द्रौपदी-चौपाई (३.७.५) ३. वही (३.७.६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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