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________________ समयसुन्दर की रचनाएँ १८७ उपर्युक्त कथानक कवि ने 'ऋषिमण्डल-टीका' से गृहीत किया है, जैसा कि कवि ने स्वयं सूचित किया है ऋषिमण्डल टीका थकी ऊद्धर्यो, क्षुल्लककुमार नउ रासो जी। समयसुन्दर कहइ सामग्री सदा, लहिज्यो लील विलासो जी॥ प्रस्तुत रास की रचना समयसुन्दर ने जालौर में वि० सं० १६९४ के वर्षावास में की थी। इसकी रचना के लिए श्रावक लूणिया फसला ने कविवर से अनुरोध किया था। उन्होंने कविवर को अपने पास रखा और उसी समय कवि ने इस रास का गुम्फन किया था। यह रास 'समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि' में प्रकाशित है। ४.१.१३ चम्पक-श्रेष्ठि-चौपाई प्रस्तुत चौपाई का कथानक पूर्व एवं पश्चिम -- दोनों देशों में प्रसिद्ध है। यह कथानक चम्पकश्रेष्ठि की जीवनी से सम्बन्धित है। इस कथानक को जैन साहित्य के अतिरिक्त ब्राह्मण एवं बौद्धसाहित्य में भी पाते हैं। जैन साहित्य में कवि समयसुन्दर के अतिरिक्त चम्पकश्रेष्ठी की कथा पर सोमसुन्दरसूरि के शिष्य जिनकीर्ति की रचना (१५वीं शती), जयविमलगणि के शिष्य प्रीतिविमल की रचना तथा जयसोम की रचना भी उपलब्ध होती है। समयसुन्दर कृत 'चम्पक-श्रेष्ठि-चौपाई' दो खण्डों में विभक्त है। इसका विवरण इस प्रकार है – प्रथम खण्ड में १३ ढालें, ३४४ गाथाएँ हैं तथा द्वितीय खण्ड में ८ ढालें, १६२ गाथाएँ हैं । ढालों के पूर्व कुछ दोहे हैं। सब मिलाकर इसमें २१ ढालें, ५०६ गाथाएँ हैं, जिसकी ७०० ग्रन्थाग्रन्थ संख्या होती है। प्रस्तुत चौपाई में चम्पक श्रेष्ठी की मुख्य कथा के व्यक्तिरिक्त किन्तु उसी के अन्तर्गत भाग्य और पुरुषार्थ के महत्त्व को सूचित करने वाली दो और कथाएँ योजित हैं। कथा को मनोरंजक बनाने के लिए एक हास्यपूर्ण कथा भी संयुक्त की गई है। संक्षेप में कथासार इस प्रकार है - प्रथम खण्ड में कवि समयसुन्दर कहते हैं कि पूर्व देश में चम्पापुरी नामक नगरी में वृद्धदत्त नामक एक करोड़पति सेठ रहता था, लेकिन वह कंजूस था। सेठ के कौतुक देवी नामक स्त्री, साधुदत्त नामक भाई और तिलोत्तमा नामक पुत्री थी। एक रात्रि में देव द्वारा उसके धन का भोक्ता काम्पिलपुर के त्रिविक्रम वणिक् की पुष्पवती दासी से उत्पन्न होने वाला है, यह ज्ञात किया। दूसरे दिन दोनों भाई विचार-विमर्श करने लगे। साधुदत्त ने भावी की अमिटता के संबंध में एक दृष्टान्त सुनाया, जो व्यर्थ में भाग्यचक्र को चुनौती देता है; किन्तु इसके १. देखिये – जिनरत्नकोश, पृष्ठ १२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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