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________________ समयसुन्दर की रचनाएँ १७३ पंचम खण्ड में कथा का विकास होता है। रामादि दण्डकारण्य में पहुँचे । वहाँ फलादि के आहार पर अपना समय व्यतीत करने लगे। एक दिन दो मुनिराजों को उन्होंने अत्यन्त भक्तिपूर्वक आहार- दान दिया । एक दुर्गन्धित पक्षी ने आकर मुनिराजों को वन्दन किया, जिससे उसकी देह सुगन्धित और निरोग हो गई। पक्षी सीता के पास रहने लगा । उसके शरीर पर सुन्दर जटा होने से उसका नाम जटायुध हो गया । उस समय लंकागढ़ में रावण राज्य करता था । लङ्का के चतुर्दिक समुद्र था । रावण ने गले में दिव्य हार पहना हुआ था, जिसमें नौ मुंह प्रतिबिम्बित होने से रावण का नाम दशमुख भी प्रसिद्ध था। रावण की बहिन चन्द्रनखा का संबुक (शम्बूक) नामक पुत्र दण्डकारण्य में विद्या-साधना कर रहा था । भवितव्यतावश लक्ष्मण के द्वारा संबुक की हत्या हो गई। इससे चन्द्रनखा के कथन पर उसके पति खरदूषण ने ससैन्य लक्ष्मण से सामना किया। खरदूषण के परास्त होने पर रावण आया । वह सीता के रूप पर मुग्ध हो गया और उसका हरण कर ले गया । जटायुघ पक्षी, रत्नजटी विद्याधर आदि ने इसका घोर विरोध किया, लेकिन रावण सीता का अपहरण करने में सफल हो गया। इधर रामलक्ष्मण आदि सीता की सतत् शोध करने लगे। उधर कामासक्त रावण की व्याकुलता अति तीव्र हो गई थी, परन्तु सीता अपने शील पर अडिग रही। रावण ने बलात्कार नहीं किया, क्योंकि उसने अनन्तवीर्य के पास व्रत लिया हुआ था कि मैं बलात्कारपूर्वक किसी भी स्त्री को नहीं भोगूंगा । इसी बीच राम और सुग्रीव का मिलन हुआ। सुग्रीव ने राम को आश्वासन दिया कि मैं सीता को खोज निकालूंगा। अतः राम उससे प्रसन्न होकर किष्किन्धा आये । वहाँ सुग्रीव नामधेयी एक कपटी साहसगति विद्याधर का राम ने अन्त किया । यहाँ 'श्री सीतारामप्रबन्धे सीता - संहरण पंचमः खण्डः' का समापन हो जाता है । षष्ठ खण्ड के आरम्भ में कवि समयसुन्दर ने जन्मदाता, दीक्षादाता, शिक्षादाता को नमस्कार किया है और तत्पश्चात् वे कहते हैं कि सुग्रीव द्वारा सीता की शोध की गई। लङ्कापति रावण से युद्ध - बल पर सीता को प्राप्त करना अशक्य था । रावण की मृत्यु व्यक्ति के द्वारा होगी, जो कोटिशिला को उठायेगा । लक्ष्मण ने इसे अपनी बायीं भुजा से ऊपर उठा लिया। अतः पवनसुत हनुमान को लङ्कापति के पास दूत रूप में भेजा गया । लङ्का में हनुमान ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया और सीता को राम की मुद्रिका तथा सन्देश देकर उसे आश्वस्त किया । प्रतिसन्देश रूप सीता ने अपना चूड़ामणि दिया । लौटते समय हनुमान मेघनाथ द्वारा नागपाश के बन्धन में जकड़ा गया। हनुमान और रावण में विवाद हुआ। हनुमान लङ्का में उपद्रव करते हुए राम के समीप वापस लौट आए। राम, सुग्रीव आदि सभी ने लङ्का पर आक्रमण करने की मन्त्रणा की । मार्गशीर्ष कृष्णा ५ को विजययोग में शुभ शकुनों से सूचित होकर राम ने विशद सेनासहित लङ्का की ओर प्रयाण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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