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________________ समयसुन्दर की रचनाएँ १६९ कवि नलदवदन्ती के अन्तिम जीवन का वर्णन करते हुए षष्ट खण्ड में कहता है कि नल ने कूबर के साथ पुनः द्यूत खेलकर अपना राज्य वापस प्राप्त कर लिया । बहुत समय तक राज्य-सुख भोग करने के पश्चात् नल और दवदन्ती को वैराग्य हो गया और उन्होंने जिनसेन आचार्य से दीक्षा अङ्गीकार कर ली। मुनि बन जाने पर भी नल के चित्त में दवदन्ती के प्रति अनुराग समाप्त नहीं हुआ । अन्त में संलेखना व्रत ( अनशन) ग्रहण करके दोनों ने देह का विसर्जन किया। दोनों देवलोक में उत्पन्न हुए। नल धनद (कुबेर) नामक देव हुआ और दवदन्ती उसकी प्रिया हुई । दवदन्ती देव - आयु पूर्णकर पेढालपुर के राजा हरिचन्द की कनकवती नामक पुत्री हुई। नल देवलोक में धनद के रूप में रहा । कनकवती का वसुदेव के साथ विवाह हुआ । कनकवती को चित्तविशुद्धि से केवलज्ञान उत्पन्न हुआ और वह साध्वी बनकर मुक्त हो गई। धनददेव भी भविष्य में देवलोक से च्युत होकर मानव-लोक में जन्म लेगा और साधना के द्वारा कैवल्य प्राप्त करके मोक्ष को प्राप्त करेगा। इसी के साथ ही दस ढालों में लिखित छठा खण्ड सम्पूर्ण होता है । यद्यपि कवि ने 'नलदवदन्ती - रास' की रचना परम्परागत कथावस्तु के आधार पर की है, फिर भी अनेक स्थलों पर उनकी अपनी प्रतिभा के कारण नवीनपन और कवित्व शक्ति का विकास देखा जा सकता है। इसी कारण कवि प्रेमानन्द रचित 'नलाख्यान' से इसकी तुलना की जाये, तो हम दोनों कृतियों को एक श्रेणी की पायेंगे । ४.१.७ सीताराम - चौपाई कविवर्य समयसुन्दर की हिन्दी भाषागत पद्य रचनाओं में 'सीताराम चौपाई ' सबसे वृहद् रचना है । यह नौ खण्ड़ों में विभक्त है। प्रथम खण्ड में ढाल ७ और गाथा २४८ हैं । द्वितीय खण्ड में ढाल ७ और गाथा १९२ हैं । तृतीय खण्ड में ढाल ७ और गाथा १६८ हैं। चतुर्थ खण्ड में ढाल ७ और गाथा २२८ हैं। पंचम खण्ड में ढाल ७ और गाथा २४८ हैं । षष्ठ खण्ड में ढाल ७ और गाथा ४४४ हैं । सप्तम खण्ड में ढाल ७ और गाथा ३१२ हैं । अष्टम खण्ड में ढाल ७ और गाथा ३२३ हैं एवं नवम खण्ड में ढाल ७ और गाथा ३५५ हैं । इस प्रकार इस ग्रन्थ में नौ खण्ड और २४१७ गाथाएँ हैं । इस रचना का परिमाण कवि ने इस प्रकार बताया है - नवखण्ड पृथिवी ना कह्या, तिण चउपई ना नव खण्डों रे । त्रिहि हजार सातसइ मानजइ ग्रन्थ नो मानो रे ॥ २ यहाँ यह 'त्रिण्हि हजारनइ सात सइ' अर्थात् ३७०० की संख्या गाथाओं की सूचक न होकर ग्रन्थ परिमाण की सूचक है; जिसकी गणना अनुष्टुप् छन्द के आधार पर होती है। १. सीताराम - चौपाई (खण्ड ९, ढाल ७, गाथा १० ) २. वही खण्ड ९, ढाल ७, गाथा १९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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