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________________ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व एक दिन विदर्भ देश के अधिपति भीम राजा ने अपनी पुत्री दवदन्ती (दययंती) के स्वयंवर हेतु निषध राजा को दूत द्वारा आमन्त्रण भेजा। अतः निषध राजा अपने दोनों पुत्रों को लेकर कुण्डिनपुर गये, जहाँ उनका पूर्ण स्वागत हुआ। दवदन्ती के स्वयंवर के लिए भीम राजा ने अति सुन्दर मण्डप की रचना की थी। अनेक देश के राजा उपस्थित थे, लेकिन दवदन्ती ने नल के गले में वरमाला पहनाई और धूमधाम के साथ दोनों का विवाह हुआ। पुत्री-विदा के समय दवदन्ती की माता आदि ने अपनी कन्या को अच्छी शिक्षाएँ दीं। कुण्डिनपुर से नलदवदन्ती ने अयोध्या के लिये प्रयाण किया। मार्ग में अर्द्ध रात्रि में चतुर्दिक् इतने अधिक भ्रमर उड़ रहे थे कि सर्वत्र अंधकार ही अंधकार हो गया और इनके आगे बढ़ने में भ्रमर अवरोधक बन गये। उसी समय दवदंती के भाल पर के स्वाभाविक तिलक के हटने से सूर्यवत् तेजपुञ्ज प्रकट हुआ। उस प्रकाश में सबने कायोत्सर्गध्यानावस्था में लीन एक मुनि/साधु का दर्शन किया। नल-दवदन्ती ने साधु की प्रदक्षिणा लगाकर वन्दन किया। कायोत्सर्ग पूर्ण होने पर मुनि ने उन्हें धर्मोपदेश दिया और दवदन्ती के भाल-तिलक का रहस्य बताया। अयोध्या नगरी में पहुँचने पर समस्त नागरिकों ने उत्साह के साथ नवदम्पति का सत्कार किया और बुजुर्गों ने शुभाशीर्वाद प्रदान किया। इसी के साथ सात ढालों में रचित पहला खण्ड समाप्त होता है। द्वितीय खण्ड में कवि कहता है कि नल अयोध्या में सुखपूर्वक राज्य करता था; परन्तु एक दिन अनुज भाई कूबर के साथ द्यूत-क्रीड़ा में पराजित हो गया और शर्त के अनुसार दोनों पति-पत्नी ने वनवास ग्रहण किया। वन में इस दम्पति को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। नल ने एक दिन सोचा कि यदि दवदन्ती मेरे साथ रहेगी, तो उसे अनेक आपदाओं को सहन करना होगा। ऐसा विचार कर रात्रि में अपने रक्त से उसके वस्त्र पर उसे पीहर जाने का सुझाव देकर वहाँ से दवदन्ती को सुषुप्त-अवस्था में छोड़कर अकेले ही प्रस्थान कर दिया। किन्तु दवदन्ती के साथ विश्वासद्रोह करने के कारण नल अपने को धिक्कारता है - हा हा नल दुष्टातमा, काँ तुं भसम न होई। निरपराध निज कामिनी, अबला तजई न कोई ॥२ दवदन्ती का त्यागकर जीवन के साथ संघर्ष करता हुआ नल आगे चला जा रहा था कि सहसा उसने आग में जलते हुए एक सर्प की बचाने की प्रार्थना सुनी। परोपकारी १. रानी पुष्पवती ने दावानल से डरकर आते हुए दन्ती (हाथी) का स्वप्न देखा था; अत: पुत्री का नाम दवदन्ती रखा गया, किन्तु लोक-भाषा में दमयन्ती नाम भी प्रचलित है। २. नलदवदन्ती रास (२.४.१९) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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