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________________ समयसुन्दर की रचनाएँ १६३ श्री अभय जैन ग्रन्थालय, बीकानेर में उपलब्ध है। सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट, बीकानेर द्वारा प्रकाशित तथा श्री भंवरलाल नाहटा द्वारा सम्पादित समयसुन्दर-रासपञ्चक में इसको संग्रहीत किया गया है। __ समयसुन्दर ने चौपाई के आरम्भ में मंगलाचरण किया है। तत्पश्चात् लिखते हैं कि गोपाचल (ग्वालियर) में पुरन्दर नामक सेठ रहता था। पुण्यश्री उसकी पत्नी थी। बहुत समय तक उनके कोई पुत्र नहीं हुआ। अन्त में कुलदेवी की आराधना से उनके एक पुत्ररत्न का जन्म हुआ, जिसका नाम पुण्यसार रखा गया। एक बार विद्यालय में पुण्यसार और रत्नवती में विवाद हो गया। रत्नवती ने पुरुष की निन्दा की, तो पुण्यसार ने उसी से विवाह करने का निर्णय किया। पुण्यसार के हठ के कारण उसका पिता रत्नवती के पिता रत्नसार के पास गया। रत्नसार ने सहर्ष स्वीकृति दे दी, लेकिन रत्नवती ने पुण्यसार से विवाह करने को अस्वीकार कर दिया। पुण्यसार ने अपना भविष्य अनुकूल बनाने के लिए कुलदेवी की उपासना की। कुलदेवी ने उसे उसका मनोवांछित सिद्ध होने का वर दिया। एक दिन पुण्यसार जुए में धरोहर रूप रखा रानी का हार हार गया। तदर्थ पिता ने उसे घर से निकाल दिया। रात्रि बिताने के लिये वह वटवृक्ष के कोटर में बैठ गया। पुण्यश्री के उपालम्भ सुनकर सेठ पुत्र को खोजने निकला। वटवृक्ष पर बैठी दो देवियों ने कौतुक देखने के लिये वटवृक्ष सहित उड़कर वल्लभी नगरी के लिए प्रस्थान किया। वहाँ पुण्यसार का सुन्दर सेठ की सात पुत्रियों से पाणिग्रहण हुआ। शरीर चिन्ता-निवारण के निमित्त से पुण्यसार महल से नीचे आया और खड़िया मिट्टी से तत्काल निम्नोक्त दोहा तथा श्लोक लिख दिया - किहाँ गोपाचल किहाँ वलहि, किहाँ लम्बोदर देव । आव्यो बेटो विहि वसहि, गयो सत्तवि परणेव॥ गोपाचलपुरा दागाँ, वल्लभ्यां नियतेर्वशात । परिणीय वधु सप्त, पुनर्तत्र गतोस्म्यहं ॥१ यह लिखकर वह जहाँ वटपृक्ष था, वहाँ आकर कोटर में बैठ गया। देवियाँ आईं और वटवृक्ष को उड़ाकर अपने स्थान में लाकर रख दिया। पुरन्दर सेठ पुत्र की खोज करता हुआ थककर वटवृक्ष के नीचे आ बैठा था। सूर्योदय होने पर पुण्यसार कोटर से निकला। पिता-पुत्र मिले। परस्पर अपने अपराधों की क्षमा-याचना की और रात्रि का सारा वृत्तान्त ज्ञात किया। पुण्यसार ने द्यूत-व्यसन छोड़ दिया। १. पुण्यसार-चरित्र-चौपाई (ढाल ९ से पूर्व दूहा ७-८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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