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________________ समयसुन्दर की रचनाएँ १६१ होने से राजा ने सिंहलसिंह को नगर-वीथिकाओं में क्रीड़ा-केलि करना सर्वथा निषिद्ध कर दिया। कुमार ने तिरस्कृत हो भाग्य-परीक्षा के निमित्त एक दिन सपत्नी नौका पर आरूढ़ होकर अन्यद्वीप के लिये प्रयाण कर दिया। तूफान में नौका टूट गई। धनवती काष्ठफलक के माध्यम से तैरती हुई समुद्र-तट पर आ गई। एक वृद्धा से नगर का नाम पूछने पर उसने बताया कि यह कुसुमपुर नगर का प्रियमेलक तीर्थ है । यहाँ जो स्त्री मौनतपपूर्वक शरण लेकर बैठती है, उसके बिछुड़े हुए पति का मिलाप निश्चित होता है। धनवती ने अभिग्रह ग्रहण कर मौन-तप आरम्भ कर दिया और वहाँ शरण ले ली। सिंहलकुमार भी एक बड़े काष्ठ के सहारे एक तट पर पहुँचा। वहाँ रत्नपुर नगर के राजा रत्नप्रभ की रानी रत्नसुन्दरी की आत्मजा रत्नवती को सर्प काट खाया। सिंघलकुमार ने अपनी मुद्रिका को जल में स्पर्श करके उस पर छिड़का और उसे निर्विष कर दिया। राजा ने कुमार के साथ अपनी पुत्री का पाणिग्रहण करा दिया, किन्तु कुमार ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर रहा था। राजा ने रुद्र पुरोहित के साथ इस नव-दम्पत्ति को भारी दहेज देकर जहाज में विदा किया। कामांध पुरोहित ने कुमार को सागर में धकेल दिया। (श्री पालरास ग्रन्थ में भी इसी तरह कामान्ध धवल सेठ, श्रीपाल को समुद्र में गिराता है।) राजकुमारी ने दुष्ट पुरोहित का यह कुकृत्य जान लिया। कुमारी ने युक्तिपूर्वक वहाँ से काष्ठतख्त के सहारे सिन्धु-तट प्राप्त कर लिया। प्रियमेलक-तीर्थ का भेद ज्ञात कर रत्नवती ने भी वहाँ शरण ली। पुरोहित ने अपनी बुद्धि से कुसुमपुर आकर राजा का मन्त्रिपद प्राप्त कर लिया। सिंहलकुमार को गिरते हुए किसी देव ने ग्रहण कर एक तापसाश्रम में पहुँचा दिया। तापस ने अपनी रूपवती नामक पुत्री से उसका विवाह करा दिया। करमोचन के समय कुमार को एक अद्भुत कंथा - जो प्रतिदिन खंखेरने पर सौ रुपये देती थी और एक आकाश-गामिनी खटोली भी दी। खटोली ने दम्पत्ति को कुसुमपुर पहुँचाया। रूपंवती को प्यास लगने पर कुमार कूप पर जाकर पानी निकालने लगा। कूप में से एक भुजङ्ग ने मानवीय भाषा में बाहर निकालने की प्रार्थना की। कुमार द्वारा उसे बाहर निकालते ही उसने कुमार को काट खाया, जिससे कुमार कुब्जा तथा कुरूप हो गया। सांप कहता है - कुमार! यह रूप तुम्हें लाभदायक होगा। (यह घटना अनायास ही नलोपाख्यान की स्मृति दिलाती है।) कुमार ने उसी रूप में पत्नी को पानी पीने को दिया। उसने पति को कुब्जेरूप में नहीं पहचाना और पीठ फेर ली। आखिर पति को न पाकर वह भी पति-प्राप्ति हेतु पूर्व शरणागत तरुणियों के पास जाकर मौन-तपस्या करने लगी। तीनों रूपवती महिलाओं के मौन-तप की प्रसिद्धि नगर में सर्वत्र फैल गयी। अतः राजा के मन में उन्हें बोलवाने की उत्सुकता जगी। राजा ने नगर में ढिंढोरा पिटवाया कि जो इन तपस्विनी सुन्दरियों का मौन-भंग करेगा, उसे राजकन्या मिलेगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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