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________________ १५३ समयसुन्दर की रचनाएँ दण्डरत्न को देखकर साधुओं ने लकड़ी के गुण-दोष प्रकट करते हुए कहा कि इस लाठी को जो ग्रहण करेगा, वह राजा बनेगा। करकण्डु और एक ब्राह्मणपुत्र ने यह रहस्य सुन लिया। श्मशान में पैदा होने से उसने ब्राह्मणपुत्र को दण्ड लेने नहीं दिया। किसी ने कहा कि यदि तुम राजा बनो, तो एक गाँव इसे भी दे देना। उसने यह बात मान ली, लेकिन दण्डरत्न के अपहरण के भय से वह कञ्चनपुर भाग आया। वहाँ के राजा का निधन हो गया, वह पुत्रहीन था। अतः राजा की नियुक्ति हेतु पञ्च दिव्य प्रकट हुए। नगर के बाहर सोया करकण्डु राज्याभिषिक्त हुआ। नगर-प्रवेश की बेला में मातङ्ग-जाति बताने से उत्पन्न विरोध दण्डरल के प्रभाव से समाप्त हो गया। उस ब्राह्मण की इच्छानुसार उसने चम्पानगरी के राजा दधिवाहन को लिखा कि इसे अपना एक गाँव दे दें और बदले में मेरा कोई नगर ले लें। दधिवाहन ने अस्वीकार कर दिया। अत: करकण्डु ने उस पर चढ़ाई कर दी। साध्वी पद्मावती ने आकर पिता-पुत्र के पारस्परिक सम्बन्ध को बताकर युद्ध को रोका। सभी में आनन्द छा गया। बाद में दधिवाहन करकण्डु को राज्य देकर दीक्षित हो गया। एक हृष्ट-पुष्ट बछड़े को कालान्तर में जराजीर्ण देखकर करकण्डु के चित्त में विरक्ति हो गई। घटना के द्वारा वह स्वयं प्रतिबोध पाकर प्रत्येक-बुद्ध हुआ। लोच कर, देव-प्रदत्त मुनि-वेष धारण कर संयम की साधना करने लगा। इसी के साथ प्रथम खण्ड का समापन हो जाता है। यह खण्ड दस ढालों में गुम्फित है और यह खण्ड बुधवार, सिद्धियोग, फाल्गुनमास, वि० सं० १६६४ में आगरा में पूर्ण हुआ था।। द्वितीय खण्ड में कवि ने दूसरे प्रत्येक-बुद्ध के सम्बन्ध में लिखा है कि पंचाल देश में कम्पिला नामक नगरी थी। वहाँ हरिकुल-वंश-रत्न जय नामक राजा राज्य करता था। उसकी पटरानी का नाम गुणमाला था। एक बार चित्रसभा बनाने के लिए भूमि खोदते समय सर्वरत्नजड़ित एक प्रतापी मुकुट निकला, जिसे महोत्सवपूर्वक राजा ने धारण किया। मुकुट में राजा के दो मुँह/मुख दिखने से उसका नाम दुमुह/द्विमुख प्रख्यात हुआ। राजा के सात पुत्र हुए और यक्ष की आराधना से एक पुत्री भी हुई। एक बार उज्जयनी-नरेश चण्डप्रद्योत ने इस प्रभावक मुकुट के बारे में सुना। उसने लोभवश द्विमुख से मुकुट मांगा। बदले में द्विमुख ने भी उससे उसके राज्य की सारभूत कुछ चीजें मांगी। चण्डप्रद्योत क्रोधित हो गया। उसने पंचाल देश पर चढ़ाई कर दी। द्विमुख मुकुट के प्रभाव से जीत गया तथा उसे बन्दी बना लिया। १. यहाँ हमें कथानक में यह असंगति दिखाई देती है कि कोई भी मुकुट, धारक के मुख को प्रतिबिम्बित नहीं कर सकता, क्योंकि प्रतिबिम्बत करने के लिए उसका सम्मुख होना आवश्यक है और सम्मुख होने पर दर्शक को द्विमुख प्रतिबिम्बन नहीं हो सकेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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