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________________ १४४ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ४.१ रास-चौपाई-साहित्य ___ कविराज समयसुन्दर का रास-चौपाई-साहित्य अति समृद्ध है। यह साहित्य मुख्यतः कथा प्रधान है। किसी सीमा तक प्रस्तुत वर्ग का शीर्षक कथा-साहित्य भी हो सकता है, किन्तु कुछेक रास-चौपाइयाँ ऐसी भी हैं, जिनका सम्बन्ध कथाओं से नहीं है। इसीलिए हमने इस वर्ग का शीर्षक कथा-साहित्य' न रखकर रास-चौपाई साहित्य' ही रखा है, ताकि अधिक भेदोपभेद की अपेक्षा उन रचनाओं का भी इसमें समावेश हो सके, जिन्हें 'कथा-साहित्य' के अन्तर्गत नहीं रखा जा सकता। जैसे - शत्रुजय-रास आदि। आलोच्य रास-चौपाई-साहित्य में समयसुन्दर ने ऐसे प्रख्यात एवं महत्त्वपूर्ण कथानकों को चुना है, जो आनन्ददायक होने के साथ-साथ शिक्षाप्रदायक सूत्रों से भी वेष्टित हों। ये गृहीत कथानक इतिहास, आगम एवं प्रकरणों पर आश्रित तथा विकल्पनाजन्य - दोनों प्रकार के हैं। समयसुन्दर ने पुरुषपात्र प्रधान कथा-साहित्य भी लिखा है और स्त्रीपात्र प्रधान भी। जैसे- पुण्यसागरचरित्र-चौपाई, वल्कलचीरी-रास, क्षुल्लकऋषि-रास, चम्पक श्रेष्ठिचौपाई आदि पुरुषपात्र प्रधान कथाएँ हैं; तो मृगावती-चरित्र-चौपाई, द्रौपदी-चौपाई स्त्रीपात्र प्रधान कथाएँ हैं। कतिपय रासों और चौपाइयों की कथाएँ ऐसी हैं, जिनमें पुरुष एवं स्त्री - दोनों पात्रों की प्रधानता है; यथा - नलदवदंती-रास, सीताराम-चौपाई। कुछ रचनाओं में एकाधिक पुरुष-पात्रों की प्रधानता है। उदाहरणार्थ- शाब-प्रद्युम्न-चौपाई, चार प्रत्येकबुद्धचौपाई, वस्तुपाल-तेजपाल-रास आदि। समयसुन्दर ने 'सिंहलसुत-प्रियमेलक-चौपाई' नामक तीर्थ माहात्म्यविषयक कथा भी गुम्फित की थी। वर्ण्य रास-चौपाई-साहित्य के कथानकों के नायक महापुरुष, शूरवीर और विजयी हैं। कवि ने जीवन के व्यापक तथा गम्भीर अनुभवों का चित्रण करने के लिए नायक के अतिरिक्त प्रतिनायक एवं गौण पात्रों की अवतारणा, विविध घटनाओं की सृष्टि, अवान्तर कथाओं की योजना आदि अनेक तत्त्वों के सम्मिश्रण से संघटित कथानकों का निर्माण अथवा ग्रहण किया है। कर्मफल बताने के लिए कवि ने अपने नायकों के पूर्व भव की कथाओं एवं अवान्तर कथाओं की हर रास-चौपाई में योजना की है। विशेषता यह है कि कथानक की पूर्व और अपर घटनाएँ एक दूसरे से पूर्ण सम्बद्ध हैं और वे अन्वितिपूर्ण, गतिशील एवं सुसंगठित हैं। कवि समयसुन्दर ने रास-चौपाई-साहित्य में अतिप्राकृत और अलौकिक तत्त्वों का भी समावेश किया है। उन्होंने अतिप्राकृत पात्रों और उनके अलौकिक कार्यों को देवता, राक्षस, यक्ष, व्यन्तर आदि द्वारा ही नहीं, बल्कि पुण्यवान् मनुष्य और मुनियों द्वारा भी दिखाया है। समयसुन्दर ने अपने प्रायः समस्त रासोसाहित्य के प्रारम्भ में मंगलाचरण, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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